Thursday, September 30, 2010

ये दूरीयां

ये दूरीयां ये सिसकियाँ ,ये घुटती हुई जिंदगी
हथेली के रेखाओं से मिटती हुई जिंदगी...

क्या पाता कब तलक, रहेगी रात बाक़ी
लौ धीमी जलती कभी बुझती हुई जिंदगी.

तलाश तो ता उम्र, रही हमें फूलों की
हर सू मगर काटों से चुभती हुई जिंदगी.

दामन तेरा थामा तुने,झटक के यूं दूर किया
परछाई को तेरी फिर भी ढुंढती हुई जिंदगी..

तूफानों की ख़ता ही क्या,साहिलों ने दग़ा दिया
दुनियां की खुदगर्ज़ी में लुटती हुई जिंदगी.....

Monday, August 30, 2010

जब दिल दुखता है तो.....

बन्द दरवाज़ा  और एक छोटी सी खिड़की
कमरे मे फैली हुई उदासी की बदबू
तुम  अभी अभी जाने से पहले
जो मुझ पर चिल्लाये थे
तुम्हारी वो तेज़ आवाज़
अभी तक इसी कमरे में
घुम रही है,
जैसे की अवाज़ीं की तरंगें घुमती रहती हैं
हवाओं म घुल घुल कर, पूरे वायुमंडल में


खिड़की, हल्की सी खोल लेती हूँ
थोड़ी सी रौशनी कमरे में आती है
जैसे इसे  कितनी जल्दी हो  अन्दर आने की
बाहर देखती हूँ,दूर दूर तक जाते अनजाने रास्ते
और उन रास्तों से गुजरते हुए लोग
एक तमन्ना जाग उठती है
में भी चलूँ इन अनजाने राहों मे
दूर बहुत दूर तलक
मुझे खबर भी न हो
कहाँ तक जाना है,बस इतना ही
बस इतना मालूम हो
लौट कर वापस नहीं आना है
फिर इन्ही बेतुके से ख़यालों मे
दिल आजाद पंछी की तरह नाचने लगा
और मैंने जल्दी से खिड़की बन्द करदी
कहीं मुझे आदत न पड़ जाये सपने देखने की
क्यों की हक़ीकत तो अभी भी यही है
बन्द दरवाज़ा और ये छोटी सी खिड़की.....


बहुत बार सोचा मैंने
में उठाउंगी पहला कदम
में अब सारी दूरियां मिटा दूंगी
और जिंदगी फिर से मुस्कुराने लगेगी
उफ़.......
क्या होता....कुछ भी नहीं.....
मैंने बहुत बार अपनी  मेहँदी की खुशबू से..
इस उदासी की बदबू को मिटाना चहा
वो नहीं माना,वो फिर कभी मेरा हुवा ही नहीं
वो उसी बदबू में जीने लगा, और
और में जीने से ज्यादा घुटने लगी


अब सोचती हूँ,काश के कभी
कभी वक़्त लौट आता
तो तब के बिगड़े इस जिंदगी के हिसाब को
कैसे भी करके सही करती
और 'round figure' में उसे तब्दील करती
फिर न उसका न मेरा, हिसाब बराबर
पर... ये सिर्फ मेरा
दिमागी फितूर के अलाबा कुछ भी नहीं....
मैं इन दिनों ,बस ख़यालों में ही ऐसा किया करती हूँ
मेरा मतलब,'round figure'और हिसाब बराबर
फिर कहती हूँ ''लो,अब हिसाब बराबर हुवा
न तुम्हारा कुछ बाकी रहा न मेरा
चलो अब तो छोडो
मेरी वजूद से क्यों चिपके हुए हो''


मैं केवल ''नीलिमा'' हूँ ''नीलिमा''
मैं आज बहुत खुश हूँ
''देखो मैंने आज अपने नाम के पीछे
तुम्हारा नाम नहीं लगाया''
''नीलिमा''नीलिमा''''नीलिमा''
वाह, कितना प्यारा है मेरा नाम
और मुझे
बहुत महोब्बत है अपने इस नाम से.........

Thursday, August 12, 2010

[जो न मिल सके वही बेवफ़ा
ये बड़ी अजीब सी बात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर
वही आज तक मेरे साथ है ]
{नूर जाहाँ की  गीत  ने  फिर से एक बार मेरे दिल को  शिकायत करने पर मजबूर कर दिया और कुछ लब्ज़ निकल कर पन्नो पर बिखर गए  आप सब को सुनाना चाहती हूँ}

कितनी बेशक्ल सी बन गयी है जिंदगी
रेत पर लिखा  हुवा कोई नाम जैसा
जिसे हर एक पल बाद
हवा का एक झोंका अपने साथ उड़ा ले जाता है

अब तो मेहँदी का ये  गहरा  रंग भी झूट लगने लगा है
सोचती हूँ किस नामुराद ने कहा होगा
के मेहँदी का  गहरा  रंग तो सबूत होता है
तुम्हारे लिए किसी के चाहत का
अब कोई क्या जाने
मेरे लिए इस से बड़ा मजाक और क्या होगा
देखो तो सही , मेरे  हाथों में मेहँदी
कितनी गहरी  रची है........

तुम अपने जिद मै मुझे कुचलते चले गए
सोचा चलो तुम्हारे कुछ काम तो आई
अब जब मेरा अक्श ही मुझसे बेगाना हो चूका
तो तुम मुझसे पूछते हो की ,"" तुम्हारा नाम क्या है?'

Thursday, July 15, 2010

नीलिमा तुम से प्यार करता हूँ.....

मेरे खिड़की के नीचे एक चिट्ठी कोई फ़ेक गया था
में जल्दी से नीचे भागी थी,चिट्ठी पढने के लिए
पत्थर में लिपटा हुवा कागज़ का टुकड़ा ....
उस पर लिखा था ''निलीमा तुम से प्यार करता हूँ''

पता नहीं आज अचानक कैसे याद आया मुझे
मेरे खिड़की के नीचे एक कागज़ का टुकड़ा
भरी बारिश में अकेले भीग रहा था
सायद इसीलिए .....

जिंदगी फिर भी चल ही तो रही है
मैंने जबाब दिया होता  तो भी  चलती ही
और  अभी भी चल रही है
हाँ ..हो सकता है जिंदगी कुछ आसान होती
और यूं भी हो सकता है
फिर वही जिंदगी मुश्किल लगती
इंसानी फ़ितरत जो है हमेशा नाखुश

''नीलीमा तुम से प्यार करता हूँ''
मैंने इन शब्दों बहुत बार पढ़ा
कभी छुपती कभी छुपाती
में तो बाबरी सी हो गयी थी
इस से पहले कभी भी
अपना नाम इतना अच्छा नहीं लगा
  
पर नीलिमा कभी कह नहीं पाई
उस से जिसने उसके खिड़की के नीचे
एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा फेका था
काश कह पाती''में भी तुम से प्यार करती हूँ''
लेकिन....
और आज तक वो जबाब
दिल के किसी कोने में दबा हुवा है
सायद कभी ज़ुबां पर आये
और कहे की
''तुम से महोब्बत है ''

Sunday, June 27, 2010

तुम गैर हो.....

तुम गैर हो ये कह नहीं सकती
तुम दिल में हो ऐसा भी नहीं है
चलते ही चलते ये फासले बढ़ गए कैसे
तुम से दूर जी  लूँगी  ये कह नहीं सकती

तुम्हारे दिल में कोई कोना मेरे लिए बचा होगा
मेरा दिल तो जाने कब से टुटा पड़ा है
फिर टूटे दिल में कोई कोना कहाँ से लाउ
जिस में तुम्हारा अक्श छुपा हुवा हो...........

Sunday, June 13, 2010

वक़्त ने जो दिया है दर्द....

वक़्त ने जो दिया है दर्द
तुम उसे क्या मिटाओगे
तुम भी तो ज़माने की तरह
वक़्त के ही मुलाज़िम हो

हम अपने दुनिया में
तनहा ही अच्छे भले हैं
तुम पास न आना कभी
वरना अपने साथ तुम
वही वक़्त ले आओगे
फिर दर्द का एक नया
सिलसिला शुरू हो जायेगा......

Wednesday, June 9, 2010

जिंदगी की कहानी .....

जिंदगी की कहानी बदलती रही.
लड़खड़ाई कभी फिर संभलती रही..

क्या जाने क्या हुवा इस सफ़र में भला.
हुई सुबह नहीं रात ढलती रही..

क़िस्सा-ए-जिंदगी क्या बताऊ तुम्हे.
वो हुवा न मेरा हाथ मलती रही..

तुम से मिलने की चाहत को दिल में लिए.
मैं बहाने से घर से निकलती रही..

तुम को पाने की धुन में क्या क्या न किया.
तुमने देखा नहीं में संवरती रही..

कोई इल्म न तुम को रहा आज तक.
हसरतें मेरी तनहा ही जलती रही..

Tuesday, June 1, 2010

मेरो विस्मृती को गर्भ मा.....
               
                                    हुन सक्छ तिमीलाई एक युग लाग्ला
                                    मेरो विस्मृतीको गर्भ मा बिलाउन
                                   स्मृतीका पट्यार लगदा दिन हरु मा
                                     म पनि उसै गरी बाँची रहेछु

                          समय अनि जिंदगी को यो मापदंड
                           मेरो अघि पूर्ण रुपमा बद्ली सकेको छ
                        हिजो जे थियो आज ठीक त्यसको विपरीत
                     मुठी खोल्छु खाली खाली खाली केवल रित्तो .......

                             
                      म सक्दिन तिमीलाई सुनाउन
                   म सक्दिन तिमीलाई समझाउन
                       केवल बिलाउन चाहन्छु म पनि
              सायद तिम्रो विस्मृतीको गर्भमा
            सायद तिम्रो विस्मृतीको गर्भमा ..........



     










                                 

Sunday, May 23, 2010

सकम्बरी सुयोगवीर पारिजात र सिरीष को फूल [नेपाली कविता]

तिमी मलाई आफ्नो नजिक आउन नदेऊ
म केही न केही गरिदिन सक्छु
म आगो बनिसकें भित्र भित्रै
हुन सक्छ तिम्रो मुटु जलाउन सक्छु ..


तिमी जस्तै म पनि एक्लै एक्लै दुखेको छू.
नभन संग संगै दुखौं जिन्दगीमा.
आवारा बतास बनेको छू हिजो आज
आफु संगै तिमी लाई उड़ाउन सक्छु..

सकम्बरी सुयोगवीर पारिजात र सिरीष को फूल
इशारा निशाना मौन हाम्रो जिंदगीको
समयको सीमा रेखा नाघ्ने आंट आऊछ जब
एउटा अर्को सिरीष को फूल फुलाउन सक्छु.
एउटा अर्को सिरीषको फूल फुलाउन सक्छु

Thursday, May 20, 2010

चेहरा तुम्हारा कुछ जाना पहचाना सा..

चेहरा तुम्हारा कुछ जाना पहचाना सा॥
सायद मैंने अपने ख्वाबों में देखा है तुमको
कई बार रात में दिन में सुबह को या शाम को
हाँ मैंने बस तुम को ही देखा है
या यूं कहू देखा था,आज बड़े दिनों बाद
पास से देखा मैंने तुम्हारा चेहरा मुझे अजनबी सा लगा
मानों में तुम को जैसे जानती ही नहीं
या यूं कहू तुम को कभी इस से पहले देखा ही नहीं

अब नहीं कह सकती की ...
चेहरा तुम्हारा कुछ जाना पहचाना सा.....
क्या तुमने इस से पहले नक़ाब पहन रखा था?
या अभी पहने हुए हो?
कुछ तो बताओ
फिर क्यों हुवा ऐसा
चेहरा तुम्हारा वो जाना पहचाना सा...
एकदम से अजनबी कैसे हो गया?....

अरे .......दोस्त
हम तो शायर है दिल के मारे हुए॥
दुनियां से हारे हुए ....

'' इश्क भरे अंदाज़ में फ़रेब करना
जान गए के तुम्हारी फितरत है
यूं तो बेवक़ूफ़ हम ही थे
जो समझ बैठे के
फ़रेब का चेहरा कितना हसीं होता है.....''

एक नाचती तितली को जो अपने हाथो से मरोड़ा तुमने
तुम खुश हुए अपने जीत पर
उसके हर अश्क जा जबाब जब वो मांगेगा तुम से
सरेआम जिंदगी का पन्ना पलटते रह जाओगे....''



nepali ghazal

 मेरो माँयालाई बजारमा सजाउने तिमी नै हौ.
 तमासा म बन्दा ताली बजाउने तिमी नै हौ ..

आफ्नै निर्दोष विश्वासको नीलामीमा सड़क मांझ
नाच्न विवश पार्दै चांप बंधाउने तिमी नै हौ..

मेरो चोखो समर्पण र भावनाको चिता माथी.
आफ्नो सपनाको महल बसाउने तिमी नै हौ..

Monday, April 26, 2010

प्यार-ओ ख्वाब को.....


प्यार-ओ-ख्वाब को एक जगह रखना.नाम देना दराज़ फुलों का।
निखर जाते हैं तेरी जुल्फों में और भी,तुम को मालूम हो ये राज़ फुलों का॥

है वजूद फुलों का तो,इश्क जिंदा जाहाँ में है।
वरना देख लो गुलशन में,दीवाना मिजाज़ फुलों का॥

घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥

वहिज़ भी गुलशन से अब.लौटा है आशिक़ बन कर।
लो हो गया साबित,आशिक़ाना अंदाज़ फुलों का॥

क्या बताऊ किस कदर,डूबा हूँ तेरी जुस्तजू में।
तेरी सलामती को उस के दर पर ,भेजा है नमाज़ फुलों का॥

[इस ग़ज़ल में मतला का पहला मिश्रा मुझे श्रद्धा जी का ब्लॉग भीगी ग़ज़ल में मिला था जो अधुरा था उन्होंने लिखा था काफिया दोष के चलते पूरा नहीं बन पाया आप सब से गुजारिश है अपना राय दें ]



Friday, April 23, 2010

फ़ुर्सत की तलाश.....


एक दिन मैंने उस से कहा ''तुम्हारे पास तो फ़ुर्सत ही नहीं है''।
उस ने मुझ को अजीब सा जबाब दिया''जान फ़ुर्सत तो है पर मिलती नहीं है''...

मे सोच में पड़ गई सच ही तो है फ़ुर्सत किस के पास है ?न मेरे पास, न तुम्हारे पास ,न उस के पास, न इस के पास, आखिर फ़ुर्सत गई ती गई कहाँ?॥
चन्द वक़्त पहले तो थी,और थी भी ऐसे की पूरी की पूरी ढेर सारी फ़ुर्सत हमारे ही पास रहती थी.पर अब ऐसा क्या हो गया ?आखिर फ़ुर्सत गई तो गई कहाँ?...क्या उस से पहले क़यामत आई थी ,या उस के बाद आ गई?? कुछ समझ नहीं आता...

किस के पास चली गई वो?कोई लौटाएगा क्या? में खोज खोज कर परेशां हो गई... शाम हो गई दिल भी दुखने लगा इसीलिए की दिल लग गया था उस से.... रोने को जी चहा ..पर ये तो भूल ही गई की रोने के लिए भी तो फ़ुर्सत ही जरुरी ...क्या करूँ देखते ही देखते सरे कम रुकते चले गए ....
क्यों की फ़ुर्सत नहीं मिली सोचने लगी,'' क्या हम अपाहिज हो चुके हैं?'' नहीं तो फ़ुर्सत के बगैर हमारा जीना मुश्किल क्यों हो रहा है? .....उस के सहारे के बगैर क्यों हम कुछ नहीं कर पा रहें?मन बड़ा ख़राब सा हुवा ..छत पर चली आई देखा सड़क पर भागते और दौड़ते लोग,सायद इनको भी फ़ुर्सत की ही तलाश होगी । लोगों की जरूरतें इतनी बढ़ चुकीं हैं की वो भूल चुकें हैं की वो कौन हैं?फ़ुर्सत की ही तलाश में इंसान सुबह से लेकर शाम तक भागता रहता है ..
वही करता है जो रोज करता है कोई सिसीफस की तरह । फिर भी वो खुश नहीं रहता क्यों की इतना करने के बाद भी उस को फ़ुर्सत नहीं मिलती ...
आखिर फ़ुर्सत कहाँ है???? सायद इन्ही भागते और दौड़ते लोगो के भीड़ में में भी शामिल हूँ... और हम में से कोई भी नहीं जनता के फ़ुर्सत भी हमारे ही साथ साथ भाग रही है करना कुछ नहीं है बस थोड़ी देर रुकना है और एक क़तरा सांस लेना है चैन का सुकून का फिर हम को हमारा जबाब मिल जायगा
की जिस फ़िरसत की हम को इतनी बेकरारी से तलाश है ''वो फ़ुर्सत आखिर है तो कहाँ है''????.......

''क्या कर पाएंगे हम इस २१वी सदी में??

....

Monday, April 19, 2010

नेपाली ग़ज़ल...

तिम्रो बोली तिम्रो मधुर आवाज़ हो मेरो ग़ज़ल।
तिम्रो धर्ती तिम्रो खुला आकाश हो मेरो ग़ज़ल॥

हरेक साँझ तिम्रो यादमा हराउदा हावा संगै।
बही आउने माँयालू सुवास हो मेरो ग़ज़ल॥

धर्ती बेग्लै आकाश ऐउटै तिम्रो मेरो दूरी भन्नु।
सम्झनामै जिउने मर्ने प्रवास हो मेरो ग़ज़ल॥

बद्लिएको छैन केही हिजो जस्तै आज पनि।
मौनतामै सिमित प्रेमको आभाष हो मेरो ग़ज़ल॥

समयको चाल संगै जति छिटो दौड़े पनि।
मृगतृष्णा जिंदगीको प्रयास हो मेरो ग़ज़ल...



Tuesday, April 13, 2010

नेपाली ग़ज़ल.....

तिमी हिंड्ने बाटोको बाधा मेरो माँया भयो।
पुरै गर्न चाहें सधै आधा मेरो माँया भयो॥

मिलनको सपनालाई अझ रंगीन बनाउन।
आफ्नै रगत बागाएनी सादा मेरो माँया भयो॥

दुई पाईला साथ हिंड्ने रहर बोकी बंधनहरु।
सबै सबै फुकाएनी बाँधा मेरो माँया भयो॥

भएनौ दोषी तिमी सधैं भूल मेरो मात्रै।
सायद होला तिमीलाई ज्यादा मेरो माँया भयो॥

स्वोदेश तथा विदेशमा रहनु भएका संपूर्ण नेपालीलाई
नया बर्ष को शुभकामना
दीक्षा रिसाल ''बुकि''
..........




Thursday, April 8, 2010

हमसफ़र नहीं....

हमसफ़र नहीं दोस्तों एक तनहा सफ़र मांगो।
काफ़िर चेहरों पर न ठहरे तुम ऐसी नज़र मांगो॥

उसकी गली में बेसबब तुम भटका न करो।
मंजिल दिखे जहाँ से ऐसी राह गुज़र मांगो॥

ये शहर ऐसा नहीं किसी के भी पास जाओ।
बेक़ारार हो तो सुनो दूर से ही ख़बर मांगो॥

दौर-ऐ हाज़िर में भी हुस्न परदे तक महदूद क्यों है।
तुम को कहीं ऐसा लगे तो बेपर्दा शहर मांगो॥

जानना है जिंदगी तो रात का वो पिछला नहीं ।
चिल चिलाती धुप में गुमसुम दोपहर मांगो॥

ग़म तमाम और भी है जिंदगी में इसके सिवा।
मरना है इश्क में तो अपने लिए ज़हर मांगो.......



Monday, April 5, 2010

तीतली की तरह...

तीतली की तरह इतराके दिखा।
एक नज़र देखूं शरमाके दिखा॥

ख़ुशबू से तेरी गुलशन महके ।
बदन को जरा महकाके दिखा॥

कोई बुग्ज़ न कोई तल्ख़ी रहे।
रौनक़े दिल तू बढ़ाके दिखा॥

तू भी है हसीं मै भी हु जवां।
इमां को मेरे बहकाके दिखा॥

हो क़यामत आज महेफिल में ।
रूख़ से तू पर्दा हटाके दिखा ....




Thursday, March 11, 2010

अपने दिल के जख्म ....

अपने दिल के जख्म को दिखाया गर होता।
पल भर सही हाथ अपना बढाया गर होता।

चेहरे की वो चमक को तरस रहे हम।
माज़ी को उसी मोड़ पर दफनाया गर होता॥

तेरे तमाम ग़मों को गले से लगा लेते।
तुने हमें अपना बनाया गर होता॥

शराब और शबाब क्या जिंदगी हम छोड़ देते।
वफ़ाओं का हक़ तुने जताया गर होता॥

अपने ही दिल से यूं पशेमां न होते।
चन्द लम्हा निगाहों को मिलाया गर होता॥

हमें देख कर छुप गए वो अपने ही शहर में।
कुछ देर घर के अन्दर बुलाया गर होता॥



Thursday, March 4, 2010

मुझे हमनफ़स

मुझे हमनफ़स तेरी, आरज़ू न होती।
सच है ये तुझ से कभी ,रूबरू न होती॥

मैं चैन से ही वैसे, कब सो पाती।
कल रात तुझ से अगर, गुफ्तगू न होती॥

नज़रें भी मिली अपनी, दुपट्टा भी फिसल गया।
धड़कन दिल की इस तरह से, बेकाबू न होती॥

ज़माने से तेरे लिए, टकराना भी मुमकिन न था।
जो तेरे इश्क की मुझ में, जुस्तजू न होती॥

पास आ कर धीरे से, कानों में कहो मुझ से।
जी न पाता जिंदगी में, जो तू न होती॥

कभी कभी सोचती हूँ, क्या तुम पास आते?
पाक़ अगर बेदाग मेरी ,आबरू न होती..



Saturday, February 27, 2010

तुम पास


तुम पास न आओ ,तो होली किस बात की।
मुझे देख कर छुप जाओ ,तो होली किस बात की॥

उस हसीन चहरे को ,प्यार से जो रंग्दु पर।
तुम ही मुझे न रंगाओ ,तो होली किस बात की॥

सुना है होली तो,प्यार में भीग जाती है।
पर तुम कोरी रह जाओ,तो होली किस बात की॥

मान जाओ न मेरे खातिर,मैं तो बस तुम्हारा हूँ।
मुझसे ही जो रूठ जाओ,तो होली किस बात की॥

ख़ुमारी मे देखू तुम को, और तुम धीरे से।
मेरे लिए न शर्माओ,तो होली किस बात की...




ऐ ख़ुदा

ऐ ख़ुदा तेरी, ऐसी भी ख़ुदाई न हो ।
जो मेरे इश्क में ,उसकी रुसवाई न हो॥

मैं जानता हु,उसकी जुस्तजू है आरज़ू मेरी।
बगैर उसके ,शाम गुजरे तो तनहाई न हो॥

अता करूँ अपनी वफ़ा, मगर क्या पता।
मुकद्दर में मेरी,उसकी बेवफ़ाई न हो॥

अदावत को तेरी मैं,सखावत बना दूंगा।
इस दफ़ा मौसम, अगर हरजाई न हो॥

तेरी अदाओं की ख़ुमारी में,दुनिया भूला दिया।
तौबा ऐसी किसी की भी,अंगड़ाई न हो॥

ऐ मेरे मालिक तुझ से,यही दुवा करता हूँ।
कभी मेरे दर्द,उसकी परछाई न हो॥



Monday, February 22, 2010

नेपाली ग़ज़ल

छाल्किएको आँखाले, मन तिम्रो छो'को भए।
हुदैनथ्यौ दूर तिमी ,सिउंदो भर्ने धोको भए॥

विश्वासमा घाउ लाग्दा ,आंसूको के मोल हुन्छ।
बुझथ्यौ होला भित्ता समाई ,तिमी कहीले रो'को भए॥

मुटु भित्र मायांको ,पवित्रता कति हुन्छ।
थाह हुन्थ्यो तिमीलाईनै, मन तिम्रो चोखो भए॥

प्रेम मेरो बजारमा, तमासा पो किन बन्थ्यो ।
घिनलाग्दो''तिमी'' यदि ,विश्वासको भोको भए॥

सुन्न मन लागेको छ,नलजाई भने हुन्छ।
तिम्री मनकी कथित रानी,म पछि को को भए॥



कुछ खास तो नहीं यूं ही.....

संबोधन क्या करू मैं ये मैं नहीं जानती और किस को करू ये भी नहीं जानती.हर पल मुझे ये उदासी काटने को दौड़ती है। मै यहाँ पर क्या कर रही हु खुद को नहीं पता ,हाँ हो सकता है तुम्हारी जिंदगी मै अपना वजूद तलाश रही हु ।
पहले तो लगता था मेरे बगैर तुम भी अधूरे हो, पर अब नहीं....,सायद तुमने अपनी जिंदगी की अधूरेपन को पूरा करने का कोई रास्ता तलाश लिया है। आज तुम नहीं हो घर पर मुझे दिन भर ऐसा लगा जैसे की कुछ हुवा है मेरे ,साथ
अपने इसी बेतुकी अहसास को खुद से ही छुपाने लगी जैसे की कुछ हुवा ही नहीं, हाँ हुवा तो कुछ भी न था फिर भी यूं ही...... तुमने मुझसे कहा था हम साथ में काम करेंगे,तुमने कहा था की तुमको मेरी जरुरत है पर सच कहू मुझे आज तक कभी भी नहीं लगा की तुमको मेरी जरुरत है। मै हर पल जलती रही जाने किस आग पर जलती रही ।
ठीक ऐसे जैसे इन दिनों जल रही हु।तुमको जब भी देखती हु अजीब सा लगता है जैसे मै तुमको पहली बार देख रही हु या मैं तुमको जानती भी नहीं हु । तुम सायद ये नहीं जानते तुम धीरे धीरे मुझसे दूर हो रहे हो और मै इस को रोक नहीं पा रही । मुझे किसी भी चीज़ की कोई भी उम्मीद नहीं है। न तुम्हारे साथ का न तुम्हारे वही दीवानगी से भरे प्यार का । मेरे लिए ये सब अफसाने बन चुके है ,कोई कहानी जो सुनने मै अच्छी लगती है बस....

तुम्हारे बगैर की जिंदगी सोचती हु लगता है कोई बुरा ख्वाब देख रही हु और तुम्हारे साथ की जो जिंदगी जी रही हु लगता है उस ख्वाब को जी रही हु,दोनों मै अंतर क्या है ,ये तुम खुद ही सोच लो । पता है ? बहोत दिनों से मेरे ज़हन मै बार बार एक अजीब सा ख्याल आता है कभी कभी तो मुझे लगता है मुझे कोई दिमागी बीमारी हो गयी है कोई ''physicological problem ''.कोई सुन्दर सी लड़की देखती हु तो लगता है सायद ये तुम्हारे लिए अच्छी रहेगी या इसके साथ तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी फिर हैरान होती हु खुद से ,मै ये क्या सोच रही हु ,कोई भी औरत ऐसा कैसे सोच सकती है क्या मुझे वाक़ई में कुछ होगया है?डर जाती हु अपने सोच से पर जब भी अपने आप को देखती हु मुझे कही से भी नहीं लगता मै तुम्हारे साथ अच्छी दिखूंगी .तुम खुद सोच लो मै किन मानसिक द्वन्द से गुजर रही हु । विद्रोह करू ? किस से .......एक शुन्यता हर तरफ ख़ामोशी काश ये ख़ामोशी मेरे सामने कभी चिल्लाये चीखे पर नहीं ये ख़ामोशी कभी नहीं चीखती।

तुम्हारे साथ पूरी दुनिया खडी है । हो सकता है इसीलिए तुमको उसी भीड़ मै खड़ी मै दिखाई नहीं दे रही पर गौर से देखना मेरी नज़र बस तुम को ही देख रही है सायद कुछ आस लिए कुछ उम्मीद लिए
की किसी दिन तो कभी तो मेरी कोई वजूद हो तुम्हारी जिंदगी मै सायद मेरी कोई जरुरत,सायद कभी तो तुम को भी हजारों की भीड़ बेबुनियादी लगे मेरे बगैर। मेरे बगैर कभी तो तुम को भी अधूरे पन का अहसास सताने लगे
पर पता नहीं क्या ये मुमकिन है भी या नहीं ....यही कहना चाहती हु तुम से उतनी ही महोब्बत है जितनी कल थी बल्कि उस से कई ज्यादा बस तुम एक बार उन्ही निगाहों से उसी अंदाज़ मै देख कर तो देखो मुझे, जाने कब से तरस रही हु मै उन निगाहों की दीद के खातिर ...........



तुमने भी....

तुमने भी आँखों में कोई ख्वाब सजा रखा है ।
इश्क की आरज़ू में दिल को जला रखा है ॥

तुम न बताओ हमे,मालूम तो हमे भी है।
तुमने अपने ख़यालों में किस को बसा रखा है॥

सुरमई अखियों को झुकाओ न इस तरह से।
इन्ही ज़ालिम अदाओं ने दीवाना बना रखा है॥

मैंने तो इन दिनों कुछ ऐसा ही सुना है।
तुमने अपने पलकों तले मुझको छुपा रखा है॥


Friday, February 19, 2010

बुलबुल को लागी


''ऊ बदलिएकै हो त?'',''हो भने किन?'',हो यस्तै सोचहरुका द्वन्दले मेरो मुटु आक्रांत पार्ने गर्छ आजभोली। लामो वार्तालाप अनि मनमुटाव पछि उसले भन्यो ''हुन सक्छ समयले मलाई पनि अलिकती परिवर्तन गरायो होला,तर आज पनि म तिमीलाई माया गर्छु ''। उसले यसो भनीरहंदा पनि मैले उसको अनुहारमा पाहिलेझैं कान्ति देखिन,उसका आँखाहरु फेरी पनि मलाई पराईझैं लागिरहे । मैले सोचें, ''यदि तिमीलाई समयले परिवर्तन गराएको हो भने मलाई किन गराएन''?,''म चाहीं किन दुखीरहने ''?। मलाई पनि परिवर्तन गराओस ,म पनि तिमी जस्तै भई बाँचौ ,खुसी साथ, जस्तो तिमीलाई कुनै कुराले फरक पर्दैन तेस्तै मलाई पनि नपरोस ।

उ संग अब मेरो पनि लगाव हराउदै गईरहेछ,मलाई डर लाग्छ कहीं यो मनमुटाव घोर घृणाको पराकाष्ठा भएर नजन्मियोस । उ अब कुनै पर पुरुष भन्दा बढ़ी कोही होइन मेरो लागी। उसलाई सायदै थाह होला,उ म देखि कती टाढा जादै छ । उ त खुसी छ,उसलाई लाग्दो म उसकी कैदी भईदिएर बांची रहेछु,र यो उसको जीत हो।
तर ''के यो उसको जीत हो''?..............
मलाई कहिलेकाहिं उ प्रति दया लागेर आउछ,''यो कस्तो पुरुष हो''? खोक्रो, नितांत खोक्रो,उसलाई के आभाष हुदैन?
की उ खोक्रो छ, भित्र देखि बहिर सम्म अनि तल देखि माथि सम्म।

मेरो एक मुठी आकाश हर साँझ मेरो बर्दालीको कुना बाट मलाई चिहाउने गर्छ। फुर्सतको बेलामा
म तिनै बादलका टुक्राहरुलाई आकार दिने गर्छु,यसै उसै परिचय विहीन आकार, अस्तित्व विहीन आकार॥ अब कही पनि पाहिले जस्तो छैन, मानौ समयले फनक्क एक फन्का घुमेर मलाई कुनै यस्तो मोडमा उभ्याइदियो जहा हर चीज़ बिरानो अनि न संगे उभिएको उ पनि बिरानो॥ थाह छैन अब जिंदगीले अब अरु कती रंग देखाउनेछ
सायद अनिश्चितताको अर्को नामनै जिंदगी हो........


Wednesday, February 17, 2010

आज भी तुमसे........


आज भी तुमसे प्यार है,ये कहने को आई तो थी ...
घर से निकली भी थी,पर पता नही,कुछ भी पता नही
मेरे कदम मुझे किस ओर ले गए,तुम नही मिले मुझे ॥
या यूं कहू मैं नही मिली तुम से,पलट कर देखा भी था मैंने
तुम दूर खड़े मुझे ही देख रहे थे ...
पर मैं दौड़ कर तुम्हारे पास आ न सकी
और न ही तुम दौड़ कर मेरे पास आ सके...

आज भी तुम से प्यार करती हु
तुम्हारी आंखों में देखकर कहू ,सोचती हु
सोचती हु पर सायद मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ?
गर होती तो उसी दिन तुम्हारे पास दौड़ कर चली आती
यूं दूर दूर से बेबसी से तुमको नही देखती...

कितनी परेशां है ये रात,बिल्कुल मेरी तरह
इसको हमेशा की तरह आज भी दर्द होगा
और इसी तरह पहर दर पहर इंतजार का दर्द सताएगा
सुबह का इतंजार खिलती हुई धुप का इंतजार

बिल्कुल मेरी तरह ,मुझे भी तो खिलती हुई धुप का इंतजार है
एक नई सुबह का इंतजार है,या यूँ कहू मुझे तुम्हारा इंतजार है।
उस दिन जब तुम्हारा फ़ोन आया ,एक दर्द सा उठा था सिने में
कहना चहा ,तुमसे मिलना है,तुमको बताना है,
जो ख़ामोशी से मैंने प्यार किया,उस ख़ामोशी को तोडना है,
पर वही ख़ामोशी मेरे गले में आ बैठी ,
और जुबान से होती हुई फ़ोन के रिसीवर तक,
तुम ''hello''''hello'' भी कर रहे थे,पर मुझसे नही हो सका॥

मैं जलती गई और और जलती गई इसी ख़ामोशी के आग में ॥

नही जानती कैसे कटेगी मेरी जिंदगी,गर इसी तरह से तो सायद ही...
सायद ही मैं जी सकू,हमेशा मैं सोचा करती हु,
तुम को किसने दूर किया मुझसे वक्त ने?हालात ने?नसीब ने? दुनिया ने ?दुनिया वालों ने?
या ख़ुद मैंने?ये इलज़ाम किस को दू?
इन दिनों ख़ुद को तसल्ली देती हु,तुम सायद मेरे नसीब में थे ही नही .....
सुना है मैंने, तुम्हारी भी शादी हो रही है,
ये सुन कर मुझे कैसा लगा ये भी नही जानती
पर जो लगा वो अहसास अच्छा भो ती नही था

अजीब सी बात लगती है,न तुम ने कदम बढाया न मैंने
इतने फासलों के दरमियाँ भी तुम मेरे करीब रहे बहोत करीब
मैं ये भी नही जानती मेरी ख़ामोशी कब टूटेगी,
इतना पता है तुम को कभी पलट कर नही देखूंगी
फ़िर जख्म हरा होजाएगा,तुम को पा कर भी खोने का जख्म
जिंदगी भर के लिए खोने का जख्म ............




Monday, February 1, 2010

पगली


''कितना अच्छा है ना?''मैंने उस से पुछा,
उसने कहा ''क्या?''मैंने कहा ''तुम्हारा चेहरा ''
''पगली'' फिर वो धेरे से मुस्कुराया ।
लम्बी सी उस सुनसान सड़क पर
मेरा हाथ उसके हाथ मे था
और हम कही खोये हुए थे ।
सब कुछ कितना अच्छा लगता था ,
उसने जो मुझे ''पगली''कहा
मुझे लगा की ........
वो मुझे हमेशा इसी तरह ''पगली''कहता रहे .......
और मे उसके लिए''पगली''बनती रहू हमेशा हमेशा ...

वो जूनून था इश्क का
हलचल थी धडकनों कि
खुशबू थी जो हवाओं मे
उसकी साँसों कि थी.......


क्या समां था वो क्या मंज़र था वो ,
जो शर्द हवाओ मे फैली हुई गर्मी थी
कुछ और नहीं उसकी बाहों कि थी ......

आजाओ तुम वापस दिल के तस्सली ही सही
मुझे एक बार फिर से ''पगली'' कहो
मे शर्माती हुई तुम्हारी बाहों मे छुप जाउंगी ....
फिर उस लम्बी सी सुनसान सड़क पर
तुम,मे और हमारा प्यार चलता रहे
हमेशा हमेशा जिंदगी भर
हम और हमारा प्यार
हम और हमारा प्यार.....




Wednesday, January 27, 2010

वापस वही पर

वापस वहीँ पर ,उसी मोड़ पर, खड़ा होना है मुझे
न किसी के इंतजार मे न किसी के प्यार मे
कोई मजबूरी है सायद, या जिंदगी को जीने की होड़ है ॥
जीने की तमन्ना को जिन्दा रखने की मजबूरी
चलते रहेने के लिए खड़े होने की मजबूरी
इसी के चलते वापस वहीँ पर
उसी मोड़ पर, खड़ा होना है मुझे॥

न किसी की तलाश है मुझे
न किसी की आने की आहट
सुनी निगाह मे अधुरा कोई ख्वाब
अभी तक जिन्दा है
नजाने क्यों?? नजाने क्यों???

अब न कोई 'क्यों'?का जबाब है मेरे पास
न कोई 'क्या'?का जबाब ....
जिंदगी की इसी खाली पनको घसीटते हुए
इसी अधूरेपन को जीते हुए लम्हा लम्हा गुजर रहा है

सब कुछ छुट गया हाथ से,धीरे धीरे ....
एक करता ठंडी साँस गले से उतरती है
अपने अंदर आग की लप्कें भर कर ...
दूर जाते हुए देख कर अब तो दर्द नहीं होता
पहेले उसको दूर जाते हुए देखा
फिर अपने सपनो को ....
फिर खुद को .....
हाँ अब खुद को खुद से दूर कर रही हु
क्यों???
फिर मेरे पास अब न कोई 'क्यों?' का जबाब है
न कोई 'क्या?' का..........

वो आगे बढ़ गया
फिर तुम आगे बढ़ गए
फिर सब आगे बढ़ गए
पर आज तक अपने सपनों को पकड़ी हुई हु
कोई एक दिन की तलाश है
एक दिन जब मेरा भी ,मेरे सपनो का भी
कोई कारवां निकलेगा उसी मोड़ से, उसी मोड़ से
जहा पर वापस आज मुझे खड़ा होना है
पर आज न मुझे किसी का इंतजार है
और न ही मुझे किसी से प्यार है.......



Friday, January 15, 2010

नेपाली ग़ज़ल

तिम्रो सामु जब मेरो लाश जलेको हुन्छ।
मेरो चोखो प्रेमको इतिहास जलेको हुन्छ॥

भरेर उनको सिउंदो तिम्रो रंगीन रात हुंदा।
मेरो चिता संगै त्यो आकाश जलेको हुन्छ॥

भुलेर तिमी मलाई जब अंगाल्नेछौ उनीलाई।
मेरो खाली अंगालोको प्यास जलेको हुन्छ॥

तेस्रो प्रहर रातमा जब दुई मुटु एक हुंदा।
मेरो अधुरो प्रेमको मधुमास जलेको हुन्छ॥

रातो रंग सिन्दुरले जब रंगिनेछ संसार उनको।
तिमीले सिउरिदिएको लाली गुरांस जलेको हुन्छ॥

बाजा बजाई मेरै घरको बाटो गरी भोली तिम्रो।
जन्ती लांदा मेरो अंतिम सास जलेको हुन्छ.....