Monday, February 22, 2010

कुछ खास तो नहीं यूं ही.....

संबोधन क्या करू मैं ये मैं नहीं जानती और किस को करू ये भी नहीं जानती.हर पल मुझे ये उदासी काटने को दौड़ती है। मै यहाँ पर क्या कर रही हु खुद को नहीं पता ,हाँ हो सकता है तुम्हारी जिंदगी मै अपना वजूद तलाश रही हु ।
पहले तो लगता था मेरे बगैर तुम भी अधूरे हो, पर अब नहीं....,सायद तुमने अपनी जिंदगी की अधूरेपन को पूरा करने का कोई रास्ता तलाश लिया है। आज तुम नहीं हो घर पर मुझे दिन भर ऐसा लगा जैसे की कुछ हुवा है मेरे ,साथ
अपने इसी बेतुकी अहसास को खुद से ही छुपाने लगी जैसे की कुछ हुवा ही नहीं, हाँ हुवा तो कुछ भी न था फिर भी यूं ही...... तुमने मुझसे कहा था हम साथ में काम करेंगे,तुमने कहा था की तुमको मेरी जरुरत है पर सच कहू मुझे आज तक कभी भी नहीं लगा की तुमको मेरी जरुरत है। मै हर पल जलती रही जाने किस आग पर जलती रही ।
ठीक ऐसे जैसे इन दिनों जल रही हु।तुमको जब भी देखती हु अजीब सा लगता है जैसे मै तुमको पहली बार देख रही हु या मैं तुमको जानती भी नहीं हु । तुम सायद ये नहीं जानते तुम धीरे धीरे मुझसे दूर हो रहे हो और मै इस को रोक नहीं पा रही । मुझे किसी भी चीज़ की कोई भी उम्मीद नहीं है। न तुम्हारे साथ का न तुम्हारे वही दीवानगी से भरे प्यार का । मेरे लिए ये सब अफसाने बन चुके है ,कोई कहानी जो सुनने मै अच्छी लगती है बस....

तुम्हारे बगैर की जिंदगी सोचती हु लगता है कोई बुरा ख्वाब देख रही हु और तुम्हारे साथ की जो जिंदगी जी रही हु लगता है उस ख्वाब को जी रही हु,दोनों मै अंतर क्या है ,ये तुम खुद ही सोच लो । पता है ? बहोत दिनों से मेरे ज़हन मै बार बार एक अजीब सा ख्याल आता है कभी कभी तो मुझे लगता है मुझे कोई दिमागी बीमारी हो गयी है कोई ''physicological problem ''.कोई सुन्दर सी लड़की देखती हु तो लगता है सायद ये तुम्हारे लिए अच्छी रहेगी या इसके साथ तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी फिर हैरान होती हु खुद से ,मै ये क्या सोच रही हु ,कोई भी औरत ऐसा कैसे सोच सकती है क्या मुझे वाक़ई में कुछ होगया है?डर जाती हु अपने सोच से पर जब भी अपने आप को देखती हु मुझे कही से भी नहीं लगता मै तुम्हारे साथ अच्छी दिखूंगी .तुम खुद सोच लो मै किन मानसिक द्वन्द से गुजर रही हु । विद्रोह करू ? किस से .......एक शुन्यता हर तरफ ख़ामोशी काश ये ख़ामोशी मेरे सामने कभी चिल्लाये चीखे पर नहीं ये ख़ामोशी कभी नहीं चीखती।

तुम्हारे साथ पूरी दुनिया खडी है । हो सकता है इसीलिए तुमको उसी भीड़ मै खड़ी मै दिखाई नहीं दे रही पर गौर से देखना मेरी नज़र बस तुम को ही देख रही है सायद कुछ आस लिए कुछ उम्मीद लिए
की किसी दिन तो कभी तो मेरी कोई वजूद हो तुम्हारी जिंदगी मै सायद मेरी कोई जरुरत,सायद कभी तो तुम को भी हजारों की भीड़ बेबुनियादी लगे मेरे बगैर। मेरे बगैर कभी तो तुम को भी अधूरे पन का अहसास सताने लगे
पर पता नहीं क्या ये मुमकिन है भी या नहीं ....यही कहना चाहती हु तुम से उतनी ही महोब्बत है जितनी कल थी बल्कि उस से कई ज्यादा बस तुम एक बार उन्ही निगाहों से उसी अंदाज़ मै देख कर तो देखो मुझे, जाने कब से तरस रही हु मै उन निगाहों की दीद के खातिर ...........



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