Saturday, February 27, 2010

ऐ ख़ुदा

ऐ ख़ुदा तेरी, ऐसी भी ख़ुदाई न हो ।
जो मेरे इश्क में ,उसकी रुसवाई न हो॥

मैं जानता हु,उसकी जुस्तजू है आरज़ू मेरी।
बगैर उसके ,शाम गुजरे तो तनहाई न हो॥

अता करूँ अपनी वफ़ा, मगर क्या पता।
मुकद्दर में मेरी,उसकी बेवफ़ाई न हो॥

अदावत को तेरी मैं,सखावत बना दूंगा।
इस दफ़ा मौसम, अगर हरजाई न हो॥

तेरी अदाओं की ख़ुमारी में,दुनिया भूला दिया।
तौबा ऐसी किसी की भी,अंगड़ाई न हो॥

ऐ मेरे मालिक तुझ से,यही दुवा करता हूँ।
कभी मेरे दर्द,उसकी परछाई न हो॥



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