[जो न मिल सके वही बेवफ़ा
ये बड़ी अजीब सी बात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर
वही आज तक मेरे साथ है ]
{नूर जाहाँ की गीत ने फिर से एक बार मेरे दिल को शिकायत करने पर मजबूर कर दिया और कुछ लब्ज़ निकल कर पन्नो पर बिखर गए आप सब को सुनाना चाहती हूँ}
कितनी बेशक्ल सी बन गयी है जिंदगी
रेत पर लिखा हुवा कोई नाम जैसा
जिसे हर एक पल बाद
हवा का एक झोंका अपने साथ उड़ा ले जाता है
अब तो मेहँदी का ये गहरा रंग भी झूट लगने लगा है
सोचती हूँ किस नामुराद ने कहा होगा
के मेहँदी का गहरा रंग तो सबूत होता है
तुम्हारे लिए किसी के चाहत का
अब कोई क्या जाने
मेरे लिए इस से बड़ा मजाक और क्या होगा
देखो तो सही , मेरे हाथों में मेहँदी
कितनी गहरी रची है........
तुम अपने जिद मै मुझे कुचलते चले गए
सोचा चलो तुम्हारे कुछ काम तो आई
अब जब मेरा अक्श ही मुझसे बेगाना हो चूका
तो तुम मुझसे पूछते हो की ,"" तुम्हारा नाम क्या है?'
5 comments:
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
यह बेशक्ल सी कविता ख़ूबसूरत है क्यूंकि दिल से कही गयी है. पता नहीं ऐसा क्यूँ मालूम पड़ता है - दर्द हकीकत के करीब है.
बहरहाल आप खुश रहें, और ब्लॉग लिखते रहें.
लफ्जों की बयानी अच्छी है, पर माफ़ कीजिये उन्हें एक सूत्र में पिरोने में कुछ कमी दिखी | दूसरी बात हिंदी की मात्रात्मक गलतियों पर ज़रूर ध्यान दें...
तुम अपने जिद मै मुझे कुचलते चले गए
सोचा चलो तुम्हारे कुछ काम तो आई
अब जब मेरा अक्श ही मुझसे बेगाना हो चूका
तो तुम मुझसे पूछते हो की ,"" तुम्हारा नाम क्या है?
man ko chu gayi panktiya
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