Wednesday, January 27, 2010

वापस वही पर

वापस वहीँ पर ,उसी मोड़ पर, खड़ा होना है मुझे
न किसी के इंतजार मे न किसी के प्यार मे
कोई मजबूरी है सायद, या जिंदगी को जीने की होड़ है ॥
जीने की तमन्ना को जिन्दा रखने की मजबूरी
चलते रहेने के लिए खड़े होने की मजबूरी
इसी के चलते वापस वहीँ पर
उसी मोड़ पर, खड़ा होना है मुझे॥

न किसी की तलाश है मुझे
न किसी की आने की आहट
सुनी निगाह मे अधुरा कोई ख्वाब
अभी तक जिन्दा है
नजाने क्यों?? नजाने क्यों???

अब न कोई 'क्यों'?का जबाब है मेरे पास
न कोई 'क्या'?का जबाब ....
जिंदगी की इसी खाली पनको घसीटते हुए
इसी अधूरेपन को जीते हुए लम्हा लम्हा गुजर रहा है

सब कुछ छुट गया हाथ से,धीरे धीरे ....
एक करता ठंडी साँस गले से उतरती है
अपने अंदर आग की लप्कें भर कर ...
दूर जाते हुए देख कर अब तो दर्द नहीं होता
पहेले उसको दूर जाते हुए देखा
फिर अपने सपनो को ....
फिर खुद को .....
हाँ अब खुद को खुद से दूर कर रही हु
क्यों???
फिर मेरे पास अब न कोई 'क्यों?' का जबाब है
न कोई 'क्या?' का..........

वो आगे बढ़ गया
फिर तुम आगे बढ़ गए
फिर सब आगे बढ़ गए
पर आज तक अपने सपनों को पकड़ी हुई हु
कोई एक दिन की तलाश है
एक दिन जब मेरा भी ,मेरे सपनो का भी
कोई कारवां निकलेगा उसी मोड़ से, उसी मोड़ से
जहा पर वापस आज मुझे खड़ा होना है
पर आज न मुझे किसी का इंतजार है
और न ही मुझे किसी से प्यार है.......



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