Wednesday, February 17, 2010

आज भी तुमसे........


आज भी तुमसे प्यार है,ये कहने को आई तो थी ...
घर से निकली भी थी,पर पता नही,कुछ भी पता नही
मेरे कदम मुझे किस ओर ले गए,तुम नही मिले मुझे ॥
या यूं कहू मैं नही मिली तुम से,पलट कर देखा भी था मैंने
तुम दूर खड़े मुझे ही देख रहे थे ...
पर मैं दौड़ कर तुम्हारे पास आ न सकी
और न ही तुम दौड़ कर मेरे पास आ सके...

आज भी तुम से प्यार करती हु
तुम्हारी आंखों में देखकर कहू ,सोचती हु
सोचती हु पर सायद मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ?
गर होती तो उसी दिन तुम्हारे पास दौड़ कर चली आती
यूं दूर दूर से बेबसी से तुमको नही देखती...

कितनी परेशां है ये रात,बिल्कुल मेरी तरह
इसको हमेशा की तरह आज भी दर्द होगा
और इसी तरह पहर दर पहर इंतजार का दर्द सताएगा
सुबह का इतंजार खिलती हुई धुप का इंतजार

बिल्कुल मेरी तरह ,मुझे भी तो खिलती हुई धुप का इंतजार है
एक नई सुबह का इंतजार है,या यूँ कहू मुझे तुम्हारा इंतजार है।
उस दिन जब तुम्हारा फ़ोन आया ,एक दर्द सा उठा था सिने में
कहना चहा ,तुमसे मिलना है,तुमको बताना है,
जो ख़ामोशी से मैंने प्यार किया,उस ख़ामोशी को तोडना है,
पर वही ख़ामोशी मेरे गले में आ बैठी ,
और जुबान से होती हुई फ़ोन के रिसीवर तक,
तुम ''hello''''hello'' भी कर रहे थे,पर मुझसे नही हो सका॥

मैं जलती गई और और जलती गई इसी ख़ामोशी के आग में ॥

नही जानती कैसे कटेगी मेरी जिंदगी,गर इसी तरह से तो सायद ही...
सायद ही मैं जी सकू,हमेशा मैं सोचा करती हु,
तुम को किसने दूर किया मुझसे वक्त ने?हालात ने?नसीब ने? दुनिया ने ?दुनिया वालों ने?
या ख़ुद मैंने?ये इलज़ाम किस को दू?
इन दिनों ख़ुद को तसल्ली देती हु,तुम सायद मेरे नसीब में थे ही नही .....
सुना है मैंने, तुम्हारी भी शादी हो रही है,
ये सुन कर मुझे कैसा लगा ये भी नही जानती
पर जो लगा वो अहसास अच्छा भो ती नही था

अजीब सी बात लगती है,न तुम ने कदम बढाया न मैंने
इतने फासलों के दरमियाँ भी तुम मेरे करीब रहे बहोत करीब
मैं ये भी नही जानती मेरी ख़ामोशी कब टूटेगी,
इतना पता है तुम को कभी पलट कर नही देखूंगी
फ़िर जख्म हरा होजाएगा,तुम को पा कर भी खोने का जख्म
जिंदगी भर के लिए खोने का जख्म ............




1 comment:

Amitraghat said...

"अशुद्ध वर्तनियों से पढ़ने का प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है
इन पर ध्यान दें..बाकि लिखा अच्छा है..शुभकामनाएँ"
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com