Saturday, February 27, 2010

तुम पास


तुम पास न आओ ,तो होली किस बात की।
मुझे देख कर छुप जाओ ,तो होली किस बात की॥

उस हसीन चहरे को ,प्यार से जो रंग्दु पर।
तुम ही मुझे न रंगाओ ,तो होली किस बात की॥

सुना है होली तो,प्यार में भीग जाती है।
पर तुम कोरी रह जाओ,तो होली किस बात की॥

मान जाओ न मेरे खातिर,मैं तो बस तुम्हारा हूँ।
मुझसे ही जो रूठ जाओ,तो होली किस बात की॥

ख़ुमारी मे देखू तुम को, और तुम धीरे से।
मेरे लिए न शर्माओ,तो होली किस बात की...




ऐ ख़ुदा

ऐ ख़ुदा तेरी, ऐसी भी ख़ुदाई न हो ।
जो मेरे इश्क में ,उसकी रुसवाई न हो॥

मैं जानता हु,उसकी जुस्तजू है आरज़ू मेरी।
बगैर उसके ,शाम गुजरे तो तनहाई न हो॥

अता करूँ अपनी वफ़ा, मगर क्या पता।
मुकद्दर में मेरी,उसकी बेवफ़ाई न हो॥

अदावत को तेरी मैं,सखावत बना दूंगा।
इस दफ़ा मौसम, अगर हरजाई न हो॥

तेरी अदाओं की ख़ुमारी में,दुनिया भूला दिया।
तौबा ऐसी किसी की भी,अंगड़ाई न हो॥

ऐ मेरे मालिक तुझ से,यही दुवा करता हूँ।
कभी मेरे दर्द,उसकी परछाई न हो॥



Monday, February 22, 2010

नेपाली ग़ज़ल

छाल्किएको आँखाले, मन तिम्रो छो'को भए।
हुदैनथ्यौ दूर तिमी ,सिउंदो भर्ने धोको भए॥

विश्वासमा घाउ लाग्दा ,आंसूको के मोल हुन्छ।
बुझथ्यौ होला भित्ता समाई ,तिमी कहीले रो'को भए॥

मुटु भित्र मायांको ,पवित्रता कति हुन्छ।
थाह हुन्थ्यो तिमीलाईनै, मन तिम्रो चोखो भए॥

प्रेम मेरो बजारमा, तमासा पो किन बन्थ्यो ।
घिनलाग्दो''तिमी'' यदि ,विश्वासको भोको भए॥

सुन्न मन लागेको छ,नलजाई भने हुन्छ।
तिम्री मनकी कथित रानी,म पछि को को भए॥



कुछ खास तो नहीं यूं ही.....

संबोधन क्या करू मैं ये मैं नहीं जानती और किस को करू ये भी नहीं जानती.हर पल मुझे ये उदासी काटने को दौड़ती है। मै यहाँ पर क्या कर रही हु खुद को नहीं पता ,हाँ हो सकता है तुम्हारी जिंदगी मै अपना वजूद तलाश रही हु ।
पहले तो लगता था मेरे बगैर तुम भी अधूरे हो, पर अब नहीं....,सायद तुमने अपनी जिंदगी की अधूरेपन को पूरा करने का कोई रास्ता तलाश लिया है। आज तुम नहीं हो घर पर मुझे दिन भर ऐसा लगा जैसे की कुछ हुवा है मेरे ,साथ
अपने इसी बेतुकी अहसास को खुद से ही छुपाने लगी जैसे की कुछ हुवा ही नहीं, हाँ हुवा तो कुछ भी न था फिर भी यूं ही...... तुमने मुझसे कहा था हम साथ में काम करेंगे,तुमने कहा था की तुमको मेरी जरुरत है पर सच कहू मुझे आज तक कभी भी नहीं लगा की तुमको मेरी जरुरत है। मै हर पल जलती रही जाने किस आग पर जलती रही ।
ठीक ऐसे जैसे इन दिनों जल रही हु।तुमको जब भी देखती हु अजीब सा लगता है जैसे मै तुमको पहली बार देख रही हु या मैं तुमको जानती भी नहीं हु । तुम सायद ये नहीं जानते तुम धीरे धीरे मुझसे दूर हो रहे हो और मै इस को रोक नहीं पा रही । मुझे किसी भी चीज़ की कोई भी उम्मीद नहीं है। न तुम्हारे साथ का न तुम्हारे वही दीवानगी से भरे प्यार का । मेरे लिए ये सब अफसाने बन चुके है ,कोई कहानी जो सुनने मै अच्छी लगती है बस....

तुम्हारे बगैर की जिंदगी सोचती हु लगता है कोई बुरा ख्वाब देख रही हु और तुम्हारे साथ की जो जिंदगी जी रही हु लगता है उस ख्वाब को जी रही हु,दोनों मै अंतर क्या है ,ये तुम खुद ही सोच लो । पता है ? बहोत दिनों से मेरे ज़हन मै बार बार एक अजीब सा ख्याल आता है कभी कभी तो मुझे लगता है मुझे कोई दिमागी बीमारी हो गयी है कोई ''physicological problem ''.कोई सुन्दर सी लड़की देखती हु तो लगता है सायद ये तुम्हारे लिए अच्छी रहेगी या इसके साथ तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी फिर हैरान होती हु खुद से ,मै ये क्या सोच रही हु ,कोई भी औरत ऐसा कैसे सोच सकती है क्या मुझे वाक़ई में कुछ होगया है?डर जाती हु अपने सोच से पर जब भी अपने आप को देखती हु मुझे कही से भी नहीं लगता मै तुम्हारे साथ अच्छी दिखूंगी .तुम खुद सोच लो मै किन मानसिक द्वन्द से गुजर रही हु । विद्रोह करू ? किस से .......एक शुन्यता हर तरफ ख़ामोशी काश ये ख़ामोशी मेरे सामने कभी चिल्लाये चीखे पर नहीं ये ख़ामोशी कभी नहीं चीखती।

तुम्हारे साथ पूरी दुनिया खडी है । हो सकता है इसीलिए तुमको उसी भीड़ मै खड़ी मै दिखाई नहीं दे रही पर गौर से देखना मेरी नज़र बस तुम को ही देख रही है सायद कुछ आस लिए कुछ उम्मीद लिए
की किसी दिन तो कभी तो मेरी कोई वजूद हो तुम्हारी जिंदगी मै सायद मेरी कोई जरुरत,सायद कभी तो तुम को भी हजारों की भीड़ बेबुनियादी लगे मेरे बगैर। मेरे बगैर कभी तो तुम को भी अधूरे पन का अहसास सताने लगे
पर पता नहीं क्या ये मुमकिन है भी या नहीं ....यही कहना चाहती हु तुम से उतनी ही महोब्बत है जितनी कल थी बल्कि उस से कई ज्यादा बस तुम एक बार उन्ही निगाहों से उसी अंदाज़ मै देख कर तो देखो मुझे, जाने कब से तरस रही हु मै उन निगाहों की दीद के खातिर ...........



तुमने भी....

तुमने भी आँखों में कोई ख्वाब सजा रखा है ।
इश्क की आरज़ू में दिल को जला रखा है ॥

तुम न बताओ हमे,मालूम तो हमे भी है।
तुमने अपने ख़यालों में किस को बसा रखा है॥

सुरमई अखियों को झुकाओ न इस तरह से।
इन्ही ज़ालिम अदाओं ने दीवाना बना रखा है॥

मैंने तो इन दिनों कुछ ऐसा ही सुना है।
तुमने अपने पलकों तले मुझको छुपा रखा है॥


Friday, February 19, 2010

बुलबुल को लागी


''ऊ बदलिएकै हो त?'',''हो भने किन?'',हो यस्तै सोचहरुका द्वन्दले मेरो मुटु आक्रांत पार्ने गर्छ आजभोली। लामो वार्तालाप अनि मनमुटाव पछि उसले भन्यो ''हुन सक्छ समयले मलाई पनि अलिकती परिवर्तन गरायो होला,तर आज पनि म तिमीलाई माया गर्छु ''। उसले यसो भनीरहंदा पनि मैले उसको अनुहारमा पाहिलेझैं कान्ति देखिन,उसका आँखाहरु फेरी पनि मलाई पराईझैं लागिरहे । मैले सोचें, ''यदि तिमीलाई समयले परिवर्तन गराएको हो भने मलाई किन गराएन''?,''म चाहीं किन दुखीरहने ''?। मलाई पनि परिवर्तन गराओस ,म पनि तिमी जस्तै भई बाँचौ ,खुसी साथ, जस्तो तिमीलाई कुनै कुराले फरक पर्दैन तेस्तै मलाई पनि नपरोस ।

उ संग अब मेरो पनि लगाव हराउदै गईरहेछ,मलाई डर लाग्छ कहीं यो मनमुटाव घोर घृणाको पराकाष्ठा भएर नजन्मियोस । उ अब कुनै पर पुरुष भन्दा बढ़ी कोही होइन मेरो लागी। उसलाई सायदै थाह होला,उ म देखि कती टाढा जादै छ । उ त खुसी छ,उसलाई लाग्दो म उसकी कैदी भईदिएर बांची रहेछु,र यो उसको जीत हो।
तर ''के यो उसको जीत हो''?..............
मलाई कहिलेकाहिं उ प्रति दया लागेर आउछ,''यो कस्तो पुरुष हो''? खोक्रो, नितांत खोक्रो,उसलाई के आभाष हुदैन?
की उ खोक्रो छ, भित्र देखि बहिर सम्म अनि तल देखि माथि सम्म।

मेरो एक मुठी आकाश हर साँझ मेरो बर्दालीको कुना बाट मलाई चिहाउने गर्छ। फुर्सतको बेलामा
म तिनै बादलका टुक्राहरुलाई आकार दिने गर्छु,यसै उसै परिचय विहीन आकार, अस्तित्व विहीन आकार॥ अब कही पनि पाहिले जस्तो छैन, मानौ समयले फनक्क एक फन्का घुमेर मलाई कुनै यस्तो मोडमा उभ्याइदियो जहा हर चीज़ बिरानो अनि न संगे उभिएको उ पनि बिरानो॥ थाह छैन अब जिंदगीले अब अरु कती रंग देखाउनेछ
सायद अनिश्चितताको अर्को नामनै जिंदगी हो........


Wednesday, February 17, 2010

आज भी तुमसे........


आज भी तुमसे प्यार है,ये कहने को आई तो थी ...
घर से निकली भी थी,पर पता नही,कुछ भी पता नही
मेरे कदम मुझे किस ओर ले गए,तुम नही मिले मुझे ॥
या यूं कहू मैं नही मिली तुम से,पलट कर देखा भी था मैंने
तुम दूर खड़े मुझे ही देख रहे थे ...
पर मैं दौड़ कर तुम्हारे पास आ न सकी
और न ही तुम दौड़ कर मेरे पास आ सके...

आज भी तुम से प्यार करती हु
तुम्हारी आंखों में देखकर कहू ,सोचती हु
सोचती हु पर सायद मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ?
गर होती तो उसी दिन तुम्हारे पास दौड़ कर चली आती
यूं दूर दूर से बेबसी से तुमको नही देखती...

कितनी परेशां है ये रात,बिल्कुल मेरी तरह
इसको हमेशा की तरह आज भी दर्द होगा
और इसी तरह पहर दर पहर इंतजार का दर्द सताएगा
सुबह का इतंजार खिलती हुई धुप का इंतजार

बिल्कुल मेरी तरह ,मुझे भी तो खिलती हुई धुप का इंतजार है
एक नई सुबह का इंतजार है,या यूँ कहू मुझे तुम्हारा इंतजार है।
उस दिन जब तुम्हारा फ़ोन आया ,एक दर्द सा उठा था सिने में
कहना चहा ,तुमसे मिलना है,तुमको बताना है,
जो ख़ामोशी से मैंने प्यार किया,उस ख़ामोशी को तोडना है,
पर वही ख़ामोशी मेरे गले में आ बैठी ,
और जुबान से होती हुई फ़ोन के रिसीवर तक,
तुम ''hello''''hello'' भी कर रहे थे,पर मुझसे नही हो सका॥

मैं जलती गई और और जलती गई इसी ख़ामोशी के आग में ॥

नही जानती कैसे कटेगी मेरी जिंदगी,गर इसी तरह से तो सायद ही...
सायद ही मैं जी सकू,हमेशा मैं सोचा करती हु,
तुम को किसने दूर किया मुझसे वक्त ने?हालात ने?नसीब ने? दुनिया ने ?दुनिया वालों ने?
या ख़ुद मैंने?ये इलज़ाम किस को दू?
इन दिनों ख़ुद को तसल्ली देती हु,तुम सायद मेरे नसीब में थे ही नही .....
सुना है मैंने, तुम्हारी भी शादी हो रही है,
ये सुन कर मुझे कैसा लगा ये भी नही जानती
पर जो लगा वो अहसास अच्छा भो ती नही था

अजीब सी बात लगती है,न तुम ने कदम बढाया न मैंने
इतने फासलों के दरमियाँ भी तुम मेरे करीब रहे बहोत करीब
मैं ये भी नही जानती मेरी ख़ामोशी कब टूटेगी,
इतना पता है तुम को कभी पलट कर नही देखूंगी
फ़िर जख्म हरा होजाएगा,तुम को पा कर भी खोने का जख्म
जिंदगी भर के लिए खोने का जख्म ............




Monday, February 1, 2010

पगली


''कितना अच्छा है ना?''मैंने उस से पुछा,
उसने कहा ''क्या?''मैंने कहा ''तुम्हारा चेहरा ''
''पगली'' फिर वो धेरे से मुस्कुराया ।
लम्बी सी उस सुनसान सड़क पर
मेरा हाथ उसके हाथ मे था
और हम कही खोये हुए थे ।
सब कुछ कितना अच्छा लगता था ,
उसने जो मुझे ''पगली''कहा
मुझे लगा की ........
वो मुझे हमेशा इसी तरह ''पगली''कहता रहे .......
और मे उसके लिए''पगली''बनती रहू हमेशा हमेशा ...

वो जूनून था इश्क का
हलचल थी धडकनों कि
खुशबू थी जो हवाओं मे
उसकी साँसों कि थी.......


क्या समां था वो क्या मंज़र था वो ,
जो शर्द हवाओ मे फैली हुई गर्मी थी
कुछ और नहीं उसकी बाहों कि थी ......

आजाओ तुम वापस दिल के तस्सली ही सही
मुझे एक बार फिर से ''पगली'' कहो
मे शर्माती हुई तुम्हारी बाहों मे छुप जाउंगी ....
फिर उस लम्बी सी सुनसान सड़क पर
तुम,मे और हमारा प्यार चलता रहे
हमेशा हमेशा जिंदगी भर
हम और हमारा प्यार
हम और हमारा प्यार.....