Friday, April 23, 2010

फ़ुर्सत की तलाश.....


एक दिन मैंने उस से कहा ''तुम्हारे पास तो फ़ुर्सत ही नहीं है''।
उस ने मुझ को अजीब सा जबाब दिया''जान फ़ुर्सत तो है पर मिलती नहीं है''...

मे सोच में पड़ गई सच ही तो है फ़ुर्सत किस के पास है ?न मेरे पास, न तुम्हारे पास ,न उस के पास, न इस के पास, आखिर फ़ुर्सत गई ती गई कहाँ?॥
चन्द वक़्त पहले तो थी,और थी भी ऐसे की पूरी की पूरी ढेर सारी फ़ुर्सत हमारे ही पास रहती थी.पर अब ऐसा क्या हो गया ?आखिर फ़ुर्सत गई तो गई कहाँ?...क्या उस से पहले क़यामत आई थी ,या उस के बाद आ गई?? कुछ समझ नहीं आता...

किस के पास चली गई वो?कोई लौटाएगा क्या? में खोज खोज कर परेशां हो गई... शाम हो गई दिल भी दुखने लगा इसीलिए की दिल लग गया था उस से.... रोने को जी चहा ..पर ये तो भूल ही गई की रोने के लिए भी तो फ़ुर्सत ही जरुरी ...क्या करूँ देखते ही देखते सरे कम रुकते चले गए ....
क्यों की फ़ुर्सत नहीं मिली सोचने लगी,'' क्या हम अपाहिज हो चुके हैं?'' नहीं तो फ़ुर्सत के बगैर हमारा जीना मुश्किल क्यों हो रहा है? .....उस के सहारे के बगैर क्यों हम कुछ नहीं कर पा रहें?मन बड़ा ख़राब सा हुवा ..छत पर चली आई देखा सड़क पर भागते और दौड़ते लोग,सायद इनको भी फ़ुर्सत की ही तलाश होगी । लोगों की जरूरतें इतनी बढ़ चुकीं हैं की वो भूल चुकें हैं की वो कौन हैं?फ़ुर्सत की ही तलाश में इंसान सुबह से लेकर शाम तक भागता रहता है ..
वही करता है जो रोज करता है कोई सिसीफस की तरह । फिर भी वो खुश नहीं रहता क्यों की इतना करने के बाद भी उस को फ़ुर्सत नहीं मिलती ...
आखिर फ़ुर्सत कहाँ है???? सायद इन्ही भागते और दौड़ते लोगो के भीड़ में में भी शामिल हूँ... और हम में से कोई भी नहीं जनता के फ़ुर्सत भी हमारे ही साथ साथ भाग रही है करना कुछ नहीं है बस थोड़ी देर रुकना है और एक क़तरा सांस लेना है चैन का सुकून का फिर हम को हमारा जबाब मिल जायगा
की जिस फ़िरसत की हम को इतनी बेकरारी से तलाश है ''वो फ़ुर्सत आखिर है तो कहाँ है''????.......

''क्या कर पाएंगे हम इस २१वी सदी में??

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