Tuesday, October 27, 2009

पैमाना .....

पैमाना,बगैर ज़ाम खालि के सिवा कुछ नही।
जिंदगी एक गन्दी गाली के सिवा कुछ नही॥

बिकते है हर रोज़ जिस्म यहाँ बाजारों मै
जो बेबसी पर गूंजती ताली के सिवा कुछ नही॥

क्या कहु अपनी क़िस्मत,एक ऐसे पेड़ की,
न गिरती न झूलती डाली के सिवा कुछ नही॥

कबाब समझ कर खाता है जो नमक रोटी भी।
दाने दाने को तरसती थाली के सिवा कुछ नही..



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