Friday, October 9, 2009

तुम्हारे लिए

तन्हाई में कभी अपने आप से बात करती हूँ
यों ही अपने आँचल को उँगलियों में लपेटते
हुए ।
बीते हुए लमहों को आँखों में सजाते हुए....
याद है तुम्हे, जब वक्त को रोकने के लिए
मैंने अपनी हाथ की घड़ी को बंद किया था
तुम खामोश होकर मेरी तरफ़ देख रहे थे ।
और उसी उदास शाम के साथ साथ
तुम्हारी भी आँखे नम होगई थी ......
तुम अपने आंसूवो को रोकने के लिए
बड़ी देर तक आसमान को टटोल रहे थे
में भी गुमसुम सी बस तुम्हारे जाने का इतंजार कर रही थी.......
कैसा रिश्ता था वो,कितना सुकून कितना करार....
जुदा होकर भी पास होने का एहेसास ॥
दिल के कोने में वो कोई मीठा सा दर्द
सायद वो इश्क ही था जिसके लिए हम जिंदा थे..
में सलाम करती हूँ उस इश्क को....
जो दुनिया को इतना मीठा एहेसास दिलाता है....
और सलाम तुमको जो मेरे दिल में हमेशा से धड़क रहे हो ...
सलाम......सलाम......






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