Friday, January 17, 2014

वक़्त का  गुज़र जाना
लमहों का ठहर जाना 
हर ज़ख्म  बनके आँशु 
हरफ़ों  में बिखर जाना

जो ख्वाब हमने  देखा
वो ख्वाब हुवा तनहा
ना रात हुई  मेरी 
और ना ही सहर जानां  

देखा ना कभी  तुमने 
काजल का भीग जाना 
आँखों के समंदर मे
तूफां का लहर जानां 

जिस दिन से मेरी राहें 
मंज़िल से जुदा होगी 
किस काम का फिर होगा 
ये गर्त -ऐ -सफऱ  जानां 

इतना तो हमें मालुम 
है कौन तेरे दिल में 
जो उनको देखते ही 
झुकती न नज़र जानां 

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