वक़्त का गुज़र जाना
लमहों का ठहर जाना
हर ज़ख्म बनके आँशु
हरफ़ों में बिखर जाना
जो ख्वाब हमने देखा
वो ख्वाब हुवा तनहा
ना रात हुई मेरी
और ना ही सहर जानां
देखा ना कभी तुमने
काजल का भीग जाना
आँखों के समंदर मे
तूफां का लहर जानां
जिस दिन से मेरी राहें
मंज़िल से जुदा होगी
किस काम का फिर होगा
ये गर्त -ऐ -सफऱ जानां
इतना तो हमें मालुम
है कौन तेरे दिल में
जो उनको देखते ही
झुकती न नज़र जानां
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