Tuesday, August 28, 2012

दिल मेरा कब दीवाना न था
साथ उसको निभाना न था
आ  मैं वो शहर छोड़ कर
अजनबी था वो अपना न था

बिखर कर हसीं फूल को
तोड़ दीं पंखुड़ियाँ सभी
इतना भी क्यों बदल वो गया
उसका अंदाज़ ऐसा न था

वो निगाहें मिला न सका
कहते कहते ही चुप रह गया
मैंने जाना के कुछ भी हो अब
दिल का तूफ़ान थमना न था

दिल में तूफ़ान घर कर गया
वो जो बोला के जी भर गया
उसको अब और कहना न था
मुझको अब और सुनना न था

अश्कों का दरिया मेरा
नजाने वो क्यों पी गया
तिश्नगी इतनी कैसे रही
ग़म मेरा इतना प्यासा न था

तुम से ये इल्तज़ा हैं मेरी
मिल भी जाओ कभी राहों में
इस तरह से गुजर जाना तुम
जैसे के तुमने देखा न था 

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