Monday, April 26, 2010

प्यार-ओ ख्वाब को.....


प्यार-ओ-ख्वाब को एक जगह रखना.नाम देना दराज़ फुलों का।
निखर जाते हैं तेरी जुल्फों में और भी,तुम को मालूम हो ये राज़ फुलों का॥

है वजूद फुलों का तो,इश्क जिंदा जाहाँ में है।
वरना देख लो गुलशन में,दीवाना मिजाज़ फुलों का॥

घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥

वहिज़ भी गुलशन से अब.लौटा है आशिक़ बन कर।
लो हो गया साबित,आशिक़ाना अंदाज़ फुलों का॥

क्या बताऊ किस कदर,डूबा हूँ तेरी जुस्तजू में।
तेरी सलामती को उस के दर पर ,भेजा है नमाज़ फुलों का॥

[इस ग़ज़ल में मतला का पहला मिश्रा मुझे श्रद्धा जी का ब्लॉग भीगी ग़ज़ल में मिला था जो अधुरा था उन्होंने लिखा था काफिया दोष के चलते पूरा नहीं बन पाया आप सब से गुजारिश है अपना राय दें ]



Friday, April 23, 2010

फ़ुर्सत की तलाश.....


एक दिन मैंने उस से कहा ''तुम्हारे पास तो फ़ुर्सत ही नहीं है''।
उस ने मुझ को अजीब सा जबाब दिया''जान फ़ुर्सत तो है पर मिलती नहीं है''...

मे सोच में पड़ गई सच ही तो है फ़ुर्सत किस के पास है ?न मेरे पास, न तुम्हारे पास ,न उस के पास, न इस के पास, आखिर फ़ुर्सत गई ती गई कहाँ?॥
चन्द वक़्त पहले तो थी,और थी भी ऐसे की पूरी की पूरी ढेर सारी फ़ुर्सत हमारे ही पास रहती थी.पर अब ऐसा क्या हो गया ?आखिर फ़ुर्सत गई तो गई कहाँ?...क्या उस से पहले क़यामत आई थी ,या उस के बाद आ गई?? कुछ समझ नहीं आता...

किस के पास चली गई वो?कोई लौटाएगा क्या? में खोज खोज कर परेशां हो गई... शाम हो गई दिल भी दुखने लगा इसीलिए की दिल लग गया था उस से.... रोने को जी चहा ..पर ये तो भूल ही गई की रोने के लिए भी तो फ़ुर्सत ही जरुरी ...क्या करूँ देखते ही देखते सरे कम रुकते चले गए ....
क्यों की फ़ुर्सत नहीं मिली सोचने लगी,'' क्या हम अपाहिज हो चुके हैं?'' नहीं तो फ़ुर्सत के बगैर हमारा जीना मुश्किल क्यों हो रहा है? .....उस के सहारे के बगैर क्यों हम कुछ नहीं कर पा रहें?मन बड़ा ख़राब सा हुवा ..छत पर चली आई देखा सड़क पर भागते और दौड़ते लोग,सायद इनको भी फ़ुर्सत की ही तलाश होगी । लोगों की जरूरतें इतनी बढ़ चुकीं हैं की वो भूल चुकें हैं की वो कौन हैं?फ़ुर्सत की ही तलाश में इंसान सुबह से लेकर शाम तक भागता रहता है ..
वही करता है जो रोज करता है कोई सिसीफस की तरह । फिर भी वो खुश नहीं रहता क्यों की इतना करने के बाद भी उस को फ़ुर्सत नहीं मिलती ...
आखिर फ़ुर्सत कहाँ है???? सायद इन्ही भागते और दौड़ते लोगो के भीड़ में में भी शामिल हूँ... और हम में से कोई भी नहीं जनता के फ़ुर्सत भी हमारे ही साथ साथ भाग रही है करना कुछ नहीं है बस थोड़ी देर रुकना है और एक क़तरा सांस लेना है चैन का सुकून का फिर हम को हमारा जबाब मिल जायगा
की जिस फ़िरसत की हम को इतनी बेकरारी से तलाश है ''वो फ़ुर्सत आखिर है तो कहाँ है''????.......

''क्या कर पाएंगे हम इस २१वी सदी में??

....

Monday, April 19, 2010

नेपाली ग़ज़ल...

तिम्रो बोली तिम्रो मधुर आवाज़ हो मेरो ग़ज़ल।
तिम्रो धर्ती तिम्रो खुला आकाश हो मेरो ग़ज़ल॥

हरेक साँझ तिम्रो यादमा हराउदा हावा संगै।
बही आउने माँयालू सुवास हो मेरो ग़ज़ल॥

धर्ती बेग्लै आकाश ऐउटै तिम्रो मेरो दूरी भन्नु।
सम्झनामै जिउने मर्ने प्रवास हो मेरो ग़ज़ल॥

बद्लिएको छैन केही हिजो जस्तै आज पनि।
मौनतामै सिमित प्रेमको आभाष हो मेरो ग़ज़ल॥

समयको चाल संगै जति छिटो दौड़े पनि।
मृगतृष्णा जिंदगीको प्रयास हो मेरो ग़ज़ल...



Tuesday, April 13, 2010

नेपाली ग़ज़ल.....

तिमी हिंड्ने बाटोको बाधा मेरो माँया भयो।
पुरै गर्न चाहें सधै आधा मेरो माँया भयो॥

मिलनको सपनालाई अझ रंगीन बनाउन।
आफ्नै रगत बागाएनी सादा मेरो माँया भयो॥

दुई पाईला साथ हिंड्ने रहर बोकी बंधनहरु।
सबै सबै फुकाएनी बाँधा मेरो माँया भयो॥

भएनौ दोषी तिमी सधैं भूल मेरो मात्रै।
सायद होला तिमीलाई ज्यादा मेरो माँया भयो॥

स्वोदेश तथा विदेशमा रहनु भएका संपूर्ण नेपालीलाई
नया बर्ष को शुभकामना
दीक्षा रिसाल ''बुकि''
..........




Thursday, April 8, 2010

हमसफ़र नहीं....

हमसफ़र नहीं दोस्तों एक तनहा सफ़र मांगो।
काफ़िर चेहरों पर न ठहरे तुम ऐसी नज़र मांगो॥

उसकी गली में बेसबब तुम भटका न करो।
मंजिल दिखे जहाँ से ऐसी राह गुज़र मांगो॥

ये शहर ऐसा नहीं किसी के भी पास जाओ।
बेक़ारार हो तो सुनो दूर से ही ख़बर मांगो॥

दौर-ऐ हाज़िर में भी हुस्न परदे तक महदूद क्यों है।
तुम को कहीं ऐसा लगे तो बेपर्दा शहर मांगो॥

जानना है जिंदगी तो रात का वो पिछला नहीं ।
चिल चिलाती धुप में गुमसुम दोपहर मांगो॥

ग़म तमाम और भी है जिंदगी में इसके सिवा।
मरना है इश्क में तो अपने लिए ज़हर मांगो.......



Monday, April 5, 2010

तीतली की तरह...

तीतली की तरह इतराके दिखा।
एक नज़र देखूं शरमाके दिखा॥

ख़ुशबू से तेरी गुलशन महके ।
बदन को जरा महकाके दिखा॥

कोई बुग्ज़ न कोई तल्ख़ी रहे।
रौनक़े दिल तू बढ़ाके दिखा॥

तू भी है हसीं मै भी हु जवां।
इमां को मेरे बहकाके दिखा॥

हो क़यामत आज महेफिल में ।
रूख़ से तू पर्दा हटाके दिखा ....