Thursday, March 11, 2010

अपने दिल के जख्म ....

अपने दिल के जख्म को दिखाया गर होता।
पल भर सही हाथ अपना बढाया गर होता।

चेहरे की वो चमक को तरस रहे हम।
माज़ी को उसी मोड़ पर दफनाया गर होता॥

तेरे तमाम ग़मों को गले से लगा लेते।
तुने हमें अपना बनाया गर होता॥

शराब और शबाब क्या जिंदगी हम छोड़ देते।
वफ़ाओं का हक़ तुने जताया गर होता॥

अपने ही दिल से यूं पशेमां न होते।
चन्द लम्हा निगाहों को मिलाया गर होता॥

हमें देख कर छुप गए वो अपने ही शहर में।
कुछ देर घर के अन्दर बुलाया गर होता॥



2 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

बाप रे बाप इस मुए ब्लॉग जगत में तो कदम पर ऐसे छुपे-रुस्तम मिलते हैं.....कि मुहं से बरबस निकल जाता है....वाह...वाह.....वाह....वाह.....!!!

M VERMA said...

हमें देख कर छुप गए वो अपने ही शहर में।
कुछ देर घर के अन्दर बुलाया गर होता॥
भूतनाथ से सहमत ... आप तो छुपे रूस्तम हैं
सुन्दर रचना