Tuesday, May 26, 2009

तुम जो दूर....

तुम दूर हुए मुझसे,जिंदगी रुकसी गई,
छूके देखती हु खुदको, कोई अजनबी सा एहेसास होता है,
तुम नज़र झुकाया क्यों करते हो।
तुम मु को मोडा क्यों करते हो,
दूर होने का कोई बहाना ही बनादो।
इसतरह से खामोश मेरे दिलको तोडा क्यों करते हो,

अपनी ही परछाई से भागती हु मैं

डरते हुए सेहेमते हुए रातें युही कटती है मेरी,
तुम्हारी यादें परेशां करती है मुझे ,मैं
उनसे बचने के लिए खुदको छुपाया करती हु,
अब ना कोई उम्मीद ,ना कोई रास्ता साथ चलने का,
मेरे दिल मैं तो आज भी धड़कते हो तुम,
अब कोई ज़िक्र मत करो ख़ुद को बदलने का ,

सर को झुकाए खड़ी हु मैं,कोई फ़ैसला सुनादो
बस एक बार आखरी बार मुझसे नज़र मिलालो,
उस एक पल में मैं सदियों जीना चाहती हु।
उसीतरह जैसे तुम कभी मुझे देखा करते थे,
और उसी तरह जैसे मैं भी कभी जिया करती थी।

आदत सी होगई मुझे खामोश रहेने की,हँसी होठो तक आते आते खोजाती है,
कोई बहाना भी अब नही मिलता जो तन्हाई में कभी ,
दीवारों से लिपटकर रोऊ मैं
कहाँ से लाऊ वो दिल,जो अपने प्यार को जाते हुए देखू,
कैसे देखू धड़कन को देल से अलग होते हुए?
कैसे देखू होठो से हँसी को अलग होते हुए?
कैसे देखू इन हाथो से तुम्हारे नाम की लकीरों को अलग होते हुए?
आँखों से सपनो को अलग होते हुए।
इस जिंदगी से तुम को अलग होते हुए
इस जिंदगी से तुम को अलग होते हुए................





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