Sunday, March 22, 2009

जिंदगी रेत की.......

जिंदगी रेत की मानिंद हाथो से फिसलती चली गई ।
होश आया तो हाथ खाली मिली वंहा कुछभी नथा।
मन के समंदर मैं शब्दों के कारवां आते चले गए,
कागज़पर उतारा तो वांहा शब्द ही न थे ।
कहने को तो हम अपनोके बीच थे ,
तन्हाई मैं पुकारा तो अपना कोई नथा ।
यू तो खड़े है हम एक गुलिस्तां मैं,
जिंदगी जो महेका दे ऐसा कोई गुल नथा....





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