Sunday, June 23, 2013

तुझको बेइन्तहां महोब्बत करूँ
और बेपरबाह हो जाऊं मैं ....
भूल जाऊं सब कुछ और
तुझ में खो जाऊं मैं


तेरी दीद को तरसती मेरी निगाहें
तेरी आने की आहट,तेरे जाने की बेचैनी
तेरी याद में गुजरा हुवा एक एक लम्हा
वो शाम की आधा प्याली चाय,डूबता हुवा सूरज
वो मेरी बालकॉनी का एक छोटा सा कोना
सब तो तेरे  अहसास से भीगे हुए हैं
फिर मैं तुझे भुलाऊं तो कैसे?
तुझसे अजनबी  बन जाऊं तो कैसे

अब कभी लगता है यूं ही बे वजह रूठ जाऊं मैं
काश के तू आए मेरे मनाने के लिए
जानती हूँ के क्षितिज के उस पार कुछ भी नहीं है
न तू, और न ही तेरे आने का कोई ज़रिया ......

बादलों के कई टुकड़ों को जोड़ कर
कभी कभी एक चहरा बनाती  हूँ
उसकी आँखें  फिर भी  मुझे अजनबी की तरह घूरती हैं
मैं यूं ही चुपचाप वहीँ पर बैठी रहती हूँ,जाने क्यूं ......

मैं तमाम उम्र उसकी ही जुस्तजू में गुजार  दूंगी
उसकी इज़ाज़त की परबाह मुझे थी ही कब
ये अधूरी सी एक कहानी उस के बिना अधूरी रहेगी
वो जाने या न जाने,माने या माने, वो हिस्सा है मेरी जिंदगी का
मेरे खवाबों, का ख्यालों का ........

आज बेपरबाह हो जाऊं मैं .........




















1 comment:

Anonymous said...

Start ek dam ramro lagyo bainee, nepali ra hindi dubai ma uttikai ramro khubi raichha tapai ko