Monday, August 30, 2010

जब दिल दुखता है तो.....

बन्द दरवाज़ा  और एक छोटी सी खिड़की
कमरे मे फैली हुई उदासी की बदबू
तुम  अभी अभी जाने से पहले
जो मुझ पर चिल्लाये थे
तुम्हारी वो तेज़ आवाज़
अभी तक इसी कमरे में
घुम रही है,
जैसे की अवाज़ीं की तरंगें घुमती रहती हैं
हवाओं म घुल घुल कर, पूरे वायुमंडल में


खिड़की, हल्की सी खोल लेती हूँ
थोड़ी सी रौशनी कमरे में आती है
जैसे इसे  कितनी जल्दी हो  अन्दर आने की
बाहर देखती हूँ,दूर दूर तक जाते अनजाने रास्ते
और उन रास्तों से गुजरते हुए लोग
एक तमन्ना जाग उठती है
में भी चलूँ इन अनजाने राहों मे
दूर बहुत दूर तलक
मुझे खबर भी न हो
कहाँ तक जाना है,बस इतना ही
बस इतना मालूम हो
लौट कर वापस नहीं आना है
फिर इन्ही बेतुके से ख़यालों मे
दिल आजाद पंछी की तरह नाचने लगा
और मैंने जल्दी से खिड़की बन्द करदी
कहीं मुझे आदत न पड़ जाये सपने देखने की
क्यों की हक़ीकत तो अभी भी यही है
बन्द दरवाज़ा और ये छोटी सी खिड़की.....


बहुत बार सोचा मैंने
में उठाउंगी पहला कदम
में अब सारी दूरियां मिटा दूंगी
और जिंदगी फिर से मुस्कुराने लगेगी
उफ़.......
क्या होता....कुछ भी नहीं.....
मैंने बहुत बार अपनी  मेहँदी की खुशबू से..
इस उदासी की बदबू को मिटाना चहा
वो नहीं माना,वो फिर कभी मेरा हुवा ही नहीं
वो उसी बदबू में जीने लगा, और
और में जीने से ज्यादा घुटने लगी


अब सोचती हूँ,काश के कभी
कभी वक़्त लौट आता
तो तब के बिगड़े इस जिंदगी के हिसाब को
कैसे भी करके सही करती
और 'round figure' में उसे तब्दील करती
फिर न उसका न मेरा, हिसाब बराबर
पर... ये सिर्फ मेरा
दिमागी फितूर के अलाबा कुछ भी नहीं....
मैं इन दिनों ,बस ख़यालों में ही ऐसा किया करती हूँ
मेरा मतलब,'round figure'और हिसाब बराबर
फिर कहती हूँ ''लो,अब हिसाब बराबर हुवा
न तुम्हारा कुछ बाकी रहा न मेरा
चलो अब तो छोडो
मेरी वजूद से क्यों चिपके हुए हो''


मैं केवल ''नीलिमा'' हूँ ''नीलिमा''
मैं आज बहुत खुश हूँ
''देखो मैंने आज अपने नाम के पीछे
तुम्हारा नाम नहीं लगाया''
''नीलिमा''नीलिमा''''नीलिमा''
वाह, कितना प्यारा है मेरा नाम
और मुझे
बहुत महोब्बत है अपने इस नाम से.........

Thursday, August 12, 2010

[जो न मिल सके वही बेवफ़ा
ये बड़ी अजीब सी बात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर
वही आज तक मेरे साथ है ]
{नूर जाहाँ की  गीत  ने  फिर से एक बार मेरे दिल को  शिकायत करने पर मजबूर कर दिया और कुछ लब्ज़ निकल कर पन्नो पर बिखर गए  आप सब को सुनाना चाहती हूँ}

कितनी बेशक्ल सी बन गयी है जिंदगी
रेत पर लिखा  हुवा कोई नाम जैसा
जिसे हर एक पल बाद
हवा का एक झोंका अपने साथ उड़ा ले जाता है

अब तो मेहँदी का ये  गहरा  रंग भी झूट लगने लगा है
सोचती हूँ किस नामुराद ने कहा होगा
के मेहँदी का  गहरा  रंग तो सबूत होता है
तुम्हारे लिए किसी के चाहत का
अब कोई क्या जाने
मेरे लिए इस से बड़ा मजाक और क्या होगा
देखो तो सही , मेरे  हाथों में मेहँदी
कितनी गहरी  रची है........

तुम अपने जिद मै मुझे कुचलते चले गए
सोचा चलो तुम्हारे कुछ काम तो आई
अब जब मेरा अक्श ही मुझसे बेगाना हो चूका
तो तुम मुझसे पूछते हो की ,"" तुम्हारा नाम क्या है?'