Thursday, September 30, 2010

ये दूरीयां

ये दूरीयां ये सिसकियाँ ,ये घुटती हुई जिंदगी
हथेली के रेखाओं से मिटती हुई जिंदगी...

क्या पाता कब तलक, रहेगी रात बाक़ी
लौ धीमी जलती कभी बुझती हुई जिंदगी.

तलाश तो ता उम्र, रही हमें फूलों की
हर सू मगर काटों से चुभती हुई जिंदगी.

दामन तेरा थामा तुने,झटक के यूं दूर किया
परछाई को तेरी फिर भी ढुंढती हुई जिंदगी..

तूफानों की ख़ता ही क्या,साहिलों ने दग़ा दिया
दुनियां की खुदगर्ज़ी में लुटती हुई जिंदगी.....

12 comments:

S.M.Masoom said...

तूफानों की ख़ता ही क्या,साहिलों ने दग़ा दिया
दुनियां की खुदगर्ज़ी में लुटती हुई जिंदगी.
Bahut khoob dikhsha
yahaan waqt nikaal ke aana hoga pdhne ke liye.

Anonymous said...

सुन्दर रचना ...........कुछ शेर बढ़िया बन पड़े हैं .....दाद कबूल फरमाएं |

आओ बात करें .......! said...

जिन्दगी से इतनी रुसवाई क्यूँ
जिन्दगी में इतनी तन्हाई क्यूँ

रात को गुजर तो जाने दीजिये
सुबह का सूरज उगने तो दीजिये

खुदगर्जी की न पूछिए
खुद को लुटने से न रोकिये

लुटने का भी अपना ही मज़ा है
हम मुस्कराएँ, ये खुदा की रजा है.

शरदिंदु शेखर said...

जिंदगी को लेकर इतना तल्ख नजरिया!

शरदिंदु शेखर said...

जिंदगी को लेकर इतना तल्ख नजरिया!

Ajay Kumar Singh said...

Nice poetry if it so...If it is your own feelings than it is really sad

अरविन्द शुक्ल said...

ऊपर वाला भी एक निर्माता है..कई भंवर बनाता है..हम भी डूबते तैरते है..
Once I wanted to be the greatest
No wind or waterfall could stall me

amrendra "amar" said...

तूफानों की ख़ता ही क्या,साहिलों ने दग़ा दिया
दुनियां की खुदगर्ज़ी में लुटती हुई जिंदगी...

Very nice line

Vilas Pandit said...

आपके ब्लॉग पर आकर जो सुकून महसूस हुआ उसे लफ़्ज़ों में बयां करना बेहद मुश्किल है.

mridula pradhan said...

bahut sunder.

'साहिल' said...

sundar ghazal

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

शेर पसंद आये आपके.