Friday, April 17, 2009

कुछ युही

सोचती हु आसमान फट जाए,और सितारे जमीन पर गीर जाए।
जो रोज़ओ शब् मुझे लुभाती है,इनकी चमक मुझसे बरदास नही होती,
जो ये तड़प कर मेरी तरह जमीन पर गीर जाए तो मानु,
झूठलाना चहाती हु हर उन लब्जों को ,
जो इन सितारों को देखकर तुम्हारे लिए कहे थे ।

आज जमीन फट जाए,और सारे रास्ते सारी वादियाँ ,
इसके अंदर समा जाए,ये वादियाँ
जिनको अपने हर तरफ पाकर तुमको याद किया करती थी,
सोचती हु मोटी मोटी लकीरें खीच कर ,
जुदा करदु उन रास्तो को
जहा कभी मैं तुम्हारा हाथ थाम कर चला करती थी

सोचती हु रोक लू वक्त के इस तूफान को,
जो मेरे सामने से होकर गुजर रहा है,
और साँसे छीन लू
जो फ़िर कभी मेरी जिंदगी को छूकर गुजर न पाए,

तुम सच हो या झूठ ,
तुम हकीकत हो या ख्वाब ,
क्या हो तुम कौन को तुम,
प्यार या नफरत
वक्त के तराजू मैं एक तरफ़ तुम
और दूसरी तरफ गुजरा हुवा कल

पता नही,
क्या सच और क्या झूठ,
हर लम्हा एक दर्द देकर जाता है
और आती है याद तुम्हारी प्यार भरी बातो की
जो सायद अब तुम भूल चुके हो,
और याद दिलाने की हिम्मत मुझमे नही रही
सोचा है गुजारुंगी जिंदगी कुछु युही कुछ युही.........



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