Thursday, March 11, 2010

अपने दिल के जख्म ....

अपने दिल के जख्म को दिखाया गर होता।
पल भर सही हाथ अपना बढाया गर होता।

चेहरे की वो चमक को तरस रहे हम।
माज़ी को उसी मोड़ पर दफनाया गर होता॥

तेरे तमाम ग़मों को गले से लगा लेते।
तुने हमें अपना बनाया गर होता॥

शराब और शबाब क्या जिंदगी हम छोड़ देते।
वफ़ाओं का हक़ तुने जताया गर होता॥

अपने ही दिल से यूं पशेमां न होते।
चन्द लम्हा निगाहों को मिलाया गर होता॥

हमें देख कर छुप गए वो अपने ही शहर में।
कुछ देर घर के अन्दर बुलाया गर होता॥



Thursday, March 4, 2010

मुझे हमनफ़स

मुझे हमनफ़स तेरी, आरज़ू न होती।
सच है ये तुझ से कभी ,रूबरू न होती॥

मैं चैन से ही वैसे, कब सो पाती।
कल रात तुझ से अगर, गुफ्तगू न होती॥

नज़रें भी मिली अपनी, दुपट्टा भी फिसल गया।
धड़कन दिल की इस तरह से, बेकाबू न होती॥

ज़माने से तेरे लिए, टकराना भी मुमकिन न था।
जो तेरे इश्क की मुझ में, जुस्तजू न होती॥

पास आ कर धीरे से, कानों में कहो मुझ से।
जी न पाता जिंदगी में, जो तू न होती॥

कभी कभी सोचती हूँ, क्या तुम पास आते?
पाक़ अगर बेदाग मेरी ,आबरू न होती..