दिल लगालिया है तो सोचा करती हु ,
मेरे दामन मै अब और क्या है ,
अपने आँचल को सरका कर देखा ,
एक छोटा सा कागज़ का टुकडा था ,
वो शायद तुम्हारा दिल था ,
और मै ख्वाब सजाने लगी ,
खोने लगी वहां जहा तुम हो, जहा मै हु ,
एक अजनबी की तहरा मिले थे हम ,
देखते देखते काफिला बहोत दूर तलक निकला ,
अब ये आलम है, चाँद कदमो की दूरिया ,
वक्त का दयिरा पार कर गई ,
फ़िर तुम दूर निकल गए वह ,
जहा मेरी आवाज़ तक पहुच नही पाई ,
तुम्हे तुम्हारा आशिया मुबारक ,
तुम्हे तुम्हारी खुशिया मुबारक।
Dikshya
7 comments:
दीक्षा जी, बेशक कवितायें तो आपकी अच्छी बन पड़ी हैं.....मगर टाईपिंग की अशुद्दियां अत्यन्त ज्यादा हैं....सो मेरी आपको विनम्र राय है...कि कुछ भी प्रकाशित करने से पूर्व उसे एक बार नज़र से अवश्य फिरा लें....ज्यादा गलतियां अखरती ही नहीं,बल्कि व्यवधान भी पैदा करती हैं.....आशा है,ध्यान रखेंगी...!!
हिंदी लिखाड़ियो की दुनिया मे आपका स्वागत । अच्छा लिखे।मां भारती का नाम रोशन करे। हजारों बधाई।
स्वागत है !
खूबसूरत ख़याल है आपकी नज़म
लाजवाब
बहुत अच्छा! सुंदर लेखन के साथ चिट्ठों की दुनिया में स्वागत है। चिट्ठाजगत से जुडऩे के बाद मैंने खुद को हमेशा खुद को जिज्ञासु पाया। चिट्ठा के उन दोस्तों से मिलने की तलब, जो अपने लेखन से रू-ब-रू होने का मौका दे रहे है का एहसास हुआ। आप भी इस विशाल सागर शब्दों के खूब गोते लगाएं। मिलते रहेंगे। शुभकामनाएं।
sudar abhivyakti...waah swagat hai.....likhte raho....vaise mere blog par bhi kuch naya hai...or aapki pratikriya ka swagat hai...
Jai Ho Magalmay Hai...
आज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा. मेरी कामना है की आपके शब्दों को और भी नए रूप, नयी अनुभूतियाँ और व्यापक अर्थ मिलें जिससे वे जन-सरोकारों की आकाक्षाओं के अनुरूप हों और अभिव्यक्ति का माध्यम बनें.....
कभी समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लायें..-
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
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