प्यार-ओ-ख्वाब को एक जगह रखना.नाम देना दराज़ फुलों का।
निखर जाते हैं तेरी जुल्फों में और भी,तुम को मालूम हो ये राज़ फुलों का॥
है वजूद फुलों का तो,इश्क जिंदा जाहाँ में है।
वरना देख लो गुलशन में,दीवाना मिजाज़ फुलों का॥
घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥
वहिज़ भी गुलशन से अब.लौटा है आशिक़ बन कर।
लो हो गया साबित,आशिक़ाना अंदाज़ फुलों का॥
क्या बताऊ किस कदर,डूबा हूँ तेरी जुस्तजू में।
तेरी सलामती को उस के दर पर ,भेजा है नमाज़ फुलों का॥
[इस ग़ज़ल में मतला का पहला मिश्रा मुझे श्रद्धा जी का ब्लॉग भीगी ग़ज़ल में मिला था जो अधुरा था उन्होंने लिखा था काफिया दोष के चलते पूरा नहीं बन पाया आप सब से गुजारिश है अपना राय दें ]
9 comments:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥
वाह दीक्षा जी ... क्या खूब कही ....
दीक्षा जी, आपकी रचना में सुन्दर भाव आकर्षित करते हैं. अलबत्ता इन्हें ग़ज़ल का नाम नहीं दिया जाना चाहिये. क्योंकि ग़ज़ल में बहर और वज़्न की जो ज़रूरत है, वो रचना में पूरी नहीं हो सकी है.
इसे नज़्म का नाम दिया जाना उचित होगा.
इसके अलावा अनुरोध है कि आप वर्तनी पर भी विशेष ध्यान दें.
रचना बहुत अच्छी है
मन के भावों को ख़ूबसूरती से पिरोने की
खूब कोशिश की गयी है
आपकी लगन ही आपको कामयाबी तक
ले जाने में मदद गार साबित होगी....
शुभ कामनाएं
घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥
ग़ज़ल की तो abcd भी नहीं जानता लेकिन आपकी सोच और शब्द निश्चित रूप से सराहनीय हैं - हार्दिक शुभकामनाएं
" बहुत अच्छी रचना..."
Dikshya ji bahut khub ... aage or behtar likhe meri shubkamnayen...
घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥
behtareen rachna hai, bahut umda gazal hai...
thodi mehnat or......
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