हमसफ़र नहीं दोस्तों एक तनहा सफ़र मांगो।
काफ़िर चेहरों पर न ठहरे तुम ऐसी नज़र मांगो॥
उसकी गली में बेसबब तुम भटका न करो।
मंजिल दिखे जहाँ से ऐसी राह गुज़र मांगो॥
ये शहर ऐसा नहीं किसी के भी पास जाओ।
बेक़ारार हो तो सुनो दूर से ही ख़बर मांगो॥
दौर-ऐ हाज़िर में भी हुस्न परदे तक महदूद क्यों है।
तुम को कहीं ऐसा लगे तो बेपर्दा शहर मांगो॥
जानना है जिंदगी तो रात का वो पिछला नहीं ।
चिल चिलाती धुप में गुमसुम दोपहर मांगो॥
ग़म तमाम और भी है जिंदगी में इसके सिवा।
मरना है इश्क में तो अपने लिए ज़हर मांगो.......
काफ़िर चेहरों पर न ठहरे तुम ऐसी नज़र मांगो॥
उसकी गली में बेसबब तुम भटका न करो।
मंजिल दिखे जहाँ से ऐसी राह गुज़र मांगो॥
ये शहर ऐसा नहीं किसी के भी पास जाओ।
बेक़ारार हो तो सुनो दूर से ही ख़बर मांगो॥
दौर-ऐ हाज़िर में भी हुस्न परदे तक महदूद क्यों है।
तुम को कहीं ऐसा लगे तो बेपर्दा शहर मांगो॥
जानना है जिंदगी तो रात का वो पिछला नहीं ।
चिल चिलाती धुप में गुमसुम दोपहर मांगो॥
ग़म तमाम और भी है जिंदगी में इसके सिवा।
मरना है इश्क में तो अपने लिए ज़हर मांगो.......
3 comments:
bahut badhiya likhti hai aap...bahut khub
उसकी गली में बेसबब तुम भटका न करो।
मंजिल दिखे जहाँ से ऐसी राह गुज़र मांगो॥
aap to ek paripakva lekhak hai, maza aa gaya ye gazal pad kar...
bahut hi aachi gajal likhi hai ji aap ne dil ko chu liya.
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