बड़ी देर तक मुझे शाम को
इस कदर वह फिर याद आ गया
मुझे रंजो ग़म के गिरफ्त में
ख़त आख़री जो थमा गया
तूफान बन के गुजर गया
हर लम्स तेरे ख़याल का
मेरे दिल को भी न ख़बर हुयी
कब आया वह और चला गया
मुझे मंजिलों की न थी कभी
न ही रास्तों की तलाश थी
है बुझा बुझा मेरा दिल यह क्यों
वह है कौन इसे जो बुझा गया
मैंने जिंदगी की तरह जिसे
चाहा था हद से गुजर गुजर
सरेराह मेरे महोब्बत का
आज वह तमाशा बना गया
तनहा तो यूं भी मैं रहती थी
लेकिन ख़लीस दिल में है क्यों
मेरी धड़कने तो सलामत हैं
दिल से मगर यह क्या गया
आज वह मेरी निगाहों से
सवाल बन के उतर गया
लौटा सका न वह वक़्त को
ख़त मेरे पर लौटा गया .......
2 comments:
आज वह मेरी निगाहों से
सवाल बन के उतर गया
लौटा सका न वह वक़्त को
ख़त मेरे पर लौटा गया .......
बिल्कुल सच कहा है आपने प्रत्येक पंक्ति में ..आभार इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये ।
दिल के सुंदर एहसास
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
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