प्यार-ओ-ख्वाब को एक जगह रखना.नाम देना दराज़ फुलों का।
निखर जाते हैं तेरी जुल्फों में और भी,तुम को मालूम हो ये राज़ फुलों का॥
है वजूद फुलों का तो,इश्क जिंदा जाहाँ में है।
वरना देख लो गुलशन में,दीवाना मिजाज़ फुलों का॥
घुला देना खुशबू में खुद को,खील जाना काटों के बिच।
इश्क की तरह यहाँ भी,क़ुरबानी है रिवाज़ फुलों का॥
वहिज़ भी गुलशन से अब.लौटा है आशिक़ बन कर।
लो हो गया साबित,आशिक़ाना अंदाज़ फुलों का॥
क्या बताऊ किस कदर,डूबा हूँ तेरी जुस्तजू में।
तेरी सलामती को उस के दर पर ,भेजा है नमाज़ फुलों का॥
[इस ग़ज़ल में मतला का पहला मिश्रा मुझे श्रद्धा जी का ब्लॉग भीगी ग़ज़ल में मिला था जो अधुरा था उन्होंने लिखा था काफिया दोष के चलते पूरा नहीं बन पाया आप सब से गुजारिश है अपना राय दें ]