मुझे हमनफ़स तेरी, आरज़ू न होती।
सच है ये तुझ से कभी ,रूबरू न होती॥
मैं चैन से ही वैसे, कब सो पाती।
कल रात तुझ से अगर, गुफ्तगू न होती॥
नज़रें भी मिली अपनी, दुपट्टा भी फिसल गया।
धड़कन दिल की इस तरह से, बेकाबू न होती॥
ज़माने से तेरे लिए, टकराना भी मुमकिन न था।
जो तेरे इश्क की मुझ में, जुस्तजू न होती॥
पास आ कर धीरे से, कानों में कहो मुझ से।
जी न पाता जिंदगी में, जो तू न होती॥
कभी कभी सोचती हूँ, क्या तुम पास आते?
पाक़ अगर बेदाग मेरी ,आबरू न होती..
सच है ये तुझ से कभी ,रूबरू न होती॥
मैं चैन से ही वैसे, कब सो पाती।
कल रात तुझ से अगर, गुफ्तगू न होती॥
नज़रें भी मिली अपनी, दुपट्टा भी फिसल गया।
धड़कन दिल की इस तरह से, बेकाबू न होती॥
ज़माने से तेरे लिए, टकराना भी मुमकिन न था।
जो तेरे इश्क की मुझ में, जुस्तजू न होती॥
पास आ कर धीरे से, कानों में कहो मुझ से।
जी न पाता जिंदगी में, जो तू न होती॥
कभी कभी सोचती हूँ, क्या तुम पास आते?
पाक़ अगर बेदाग मेरी ,आबरू न होती..
3 comments:
ज़माने से तेरे लिए, टकराना भी मुमकिन न था।
जो तेरे इश्क की मुझ में, जुस्तजू न होती॥
Sahi baat hai.
ये इश्क की जुस्तजू मतलब दिली सुकून की तलाश... है जो ग़ज़ल लिखवाई जा रही है.
लिखते रहें...
gazal shilp me bahut saari kamiyaan hain ... kahan aapke achhe hain... gujaarish karunga ... guru dev ke sampark me aayen... guru dev pankaj subir... .. kramaagat roop se likhte rahen...
arsh
Arsh ki baat par dhyaan den...
http://subeerin.blogspot.com/
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