आज फ़िर से दिल को दुखाने बैठी हु
और फ़िर से ख़ुद को रुलाने बैठी hu
तू समझाता है मुझे फ़िर भी मगर।
नही मानता दिल उसे समझाने बैठी हु।
तेरे पहेले इश्क का बेआबरू सा चेहरा
पूछता है सवाल उसे मिटाने बैठी हु.......
Post a Comment
No comments:
Post a Comment